सोमवार, 5 अगस्त 2013

निशानियाँ

यूं तिनकों सी बिखरी हुई मेरी आराइश (१)
खूबसूरत रात की दास्ताँ कहती है
तेरे जाने के बाद भी पहरों तक
मेरे लबों पे इक जुम्बिश (२) रहती है
गेसुओं में तेरी उँगलियों की हरारत
 हर ज़ुल्फ़ उनछुई सिहरन सहती है
लरजती पलकों पे तेरे लबों की आहट
किसी शरारत की कहानी कहती है
तेरे आगोश में आकर टूट जाने की
उस वक़्त बस यही कोशिश रहती है
कि डूब जाऊं तुझ में  इस तरह से मैं
जैसे रेत दरिया के चश्मों संग बहती है
न जाने फिर कब आयेगा तू और
खूबसूरत सा वो मिलन होगा
कुछ तो छोड़ जाने की भी
दुनिया की रवायत (३) कहती है
चल कुछ और नहीं तो बस तू फिर
लबों पे गवाही छोड़ जाना
सुना है कि कुछ ख़ास गवाहियां
बन के निशानियाँ रहती हैं

शब्दार्थ : (१) साज-सज्जा (२) एह्साह (३) रस्म