रविवार, 29 नवंबर 2009
आ तुझे अपना बनाएं हम!
चलो इक आशियाँ बनाएं हम,
चमचमाती रौशनी फराहम(२) कर के,
सपनो का महल सजायें हम,
चांदनी के नूर से कुछ रंगत ले के,
मुहब्बत के दिए जलायें हम,
सूरज की सुनहरी कशिश ले के,
रंग-ऐ-रुखसार अफज़ा(३) कराएं हम,
गम-ऐ-फुरक़त (४) से कोसों दूर जा के,
गुफ्त-ऐ-शानीद-ऐ-मुहब्बत(५) में खो जायें हम,
जिस रात हूरें जुल्फों पे तेरी अफशां(६) करें,
उसी रात तुझे आगोश में ले अपना बनाएं हम!
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(१) दिल (२) इकठ्ठा (३) बढ़ाना (४) जुदाई (५) मुहब्बत की गहरी बातें (६) सुनहरे पानी की फुहार
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बुधवार, 25 नवंबर 2009
तेरा ही करम.....
ख़्वाबों के झुरमुट और तारों की छाँव में,
गेसू-दराज़(१) में गिरता चला गया मैं,
पहली नज़र में मानूस(२) लगी मुझे,
सबाहत(३) में घिरता चला गया मैं,
तेरी नज़र का कुछ ऐसा वार हुआ,
पत्तों माफिक बिखरता चला गया मैं,
नागहाँ(४) तेरी गली का रुख कर लिया,
बदहवास हुआ फिरता चला गया मैं,
पेश्दास्ती(५) में था के तू थाम लेगी,
दिल हथेली पे लिए चीरता चला गया मैं।
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(१) घने बाल (२) जाना पहचाना (३) खूबसूरती (४) अचानक (५) उम्मीद
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शनिवार, 21 नवंबर 2009
फरमाइश की है...
तेरा आबिद बन के तुझ से गुजारिश की है,
सजदे में तेरे ख़ाक हुए उसी दिन से,
जब से आफ़ताब-ऐ-नूर नुमाइश की है,
हाजत-मंद तेरे हुस्न का बाशिंदा हूँ,
फुर्सत में इलाही ने तराइश की है,
इन ताबदार गेसुओं में पनाही दे दे,
मेरी तरफ़ से जिन्होंने ये शिकायत की है,
जाम-ऐ-गाफिर नज़र भर देख ले मुझको,
बड़े माहरम से तुझ से फरमाइश की है,
बड़े माहरम से तुझ से फरमाइश की है!
गुरुवार, 19 नवंबर 2009
बस यूँ ही आज....
काश कोई रिश्ता निभाना न पड़े,
किसी को यूँ छोड़ के जाना न पड़े,
यादों की शम्मा को जला के कभी,
बेदर्दी से उसको बुझाना न पड़े,
करीबी लोगो से रखना परहेज,
कहीं बाद में धोखा खाना न पड़े,
चिलमन-ऐ-नैन खामोश ही रखना,
मुफलिसी में इन्हे झुकाना न पड़े,
तन्हाई में पी लूँ आज कुछ मैं ऐसे,
मयखाने में जाम छलकाना न पड़े,
बुला ले खुदा दूर इतना मुझे,
ज़माने की महफ़िल में आना न पड़े,
ज़माने की महफ़िल में आना न पड़े!