मंगलवार, 7 जनवरी 2014

अरमान अभी कुछ बाक़ी हैं!

क्या जी ली ज़िंदगी जी भर के
या उम्मीद नयी इक ताकी है
हर रोज़ सोच के जीता हूँ
अरमान अभी कुछ बाक़ी हैं
बचपन की यादें हुई गुम
वो यार जो बिछड़े राहों में
उन यारों से भी झगड़ों का
कुछ लेना देना बाक़ी है
जद्दो - जहद में ज़िन्दगी की
कुछ पल जो सुनहरे बिखर गए
उन पलों से खुद के पल चुन कर
शीशे में सजाना बाक़ी है
कभी इसके लिए कभी उसके लिए
अपनों के लिए दूजों के लिए
हर लम्हा दिल से  जीता हूँ
उम्मीद सी दिल में बंधती है
मेरा वक़्त भी आना बाक़ी है
सबके जीवन में खुशियों के
मुस्काते फूल खिलाता हूँ
शायद वो मिटटी होगी हरी
जिसका वो रंग तो खाकी है
हर रोज़ सोच के जीता हूँ
अरमान अभी कुछ बाक़ी हैं!