शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

अँधेरे का एहसास न हो!

अभी कुछ दिन ही हुए तुम दूर गए,

लगता है अरसो से तुम पास नहीं हो,

गाहे-बगाहे सासें भी रुक रुक के आती हैं,

जैसे इन्हें भी तेरी साँसों बिना जीने की आस नहीं हो,

तुझ पे लिखी हुई बंदिशों का पुलिंदा उठाया,

सोचा पढ़ लूं तो दूरियों का एहसास नहीं हो,

ज़ालिम हर लफ्ज़ की तासीर ने यूं घायल किया,

जैसे उन्हें मेरी तन्हाईयों का एहसास नहीं हो,

कुछ और पन्ने पलटे तो इक सूखा गुलाब दिखा,

फिर याद आया अरे ये तो वही पहला गुलाब है,

जो डर डर के तुम्हें देने को तुम्हारी सहेली को दिया था,

दूर झरोखे से तुम्हें यूं देख रहा था जैसे,

नज़रें उठाने की भी हिम्मत पास नहीं हो,

तुमने फूल लिया और मैं दौड़ कर ऊपर के कमरे में गया,

छोटे से मंदिर में घी का दिया जलाते हुए,

रब को हाथ बांधे शुक्रिया करते हुए कहा,

भले ही मिलाना हज़ारों से पर ध्यान ये रखना,

के कोई तुम जैसा खासम-ख़ास नहीं हो,

खुशकिस्मती है आप ज़िन्दगी का हिस्सा हैं,

जो कभी भी ख़त्म न हो ऐसा एक किस्सा हैं,

इंतज़ार में हूँ तुम जल्द आओ और अपने रुखसार से,

कुछ यूं रौशन करो की गर्त में भी अँधेरे का एहसास नहीं हो!

बुधवार, 12 जनवरी 2011

केश सिक्खां लई सब तों वड्डी दात!

कल शाम मैं गुरबाणी विचार सुन रहा था तो सिख पंथ के महान कथा-वाचक भाई पिंदरपाल सिंह जी ने एक कथा सुनाई! यह कथा जो आजकल केशों(बालों) की बे-अदबी कर रहे हैं सिख भाई, उनके लिए प्रेरणा है! मैं पूरा तो नहीं सुन पाया लेकिन जो सुना वही आप सभी के सन्मुख रख रहा हूँ!

गुरु गोबिंद सिंह जी जब औरंगजेब के खिलाफ लड़ाई कर रहे थे तो एक मुस्लिम जिसका नाम बुद्धू शाह था औरंगजेब का साथ छोड़ के गुरु साहिब के साथ मिल गया क्योंकि उसके मुताबिक़ गुरूजी सच की लड़ाई लड़ रहे थे, एक एक कर के दोनों ओर से लोग शहीद हो रहे थे और इस भाई बुद्धू शाह ने अपने दोनों जवान बेटों को भी लड़ाई के लिए गुरु जी के सुपुर्द कर दिया! लड़ाई में बुद्धू शाह के दोनों बेटे भी शहीद हो गए, जब ये बात गुरु जी को पता चली तो उनका दिल भर आया और उन्होंने बुद्धू शाह के पास जा के कहा, "बुद्धू शाह, आज तेरे दोनों बेटों ने सच के लिए कुर्बानी दी है, मांग आज तो तुझे माँगना है", उस वक़्त गुरु गोबिंद सिंह जी अपने केशों में कंघा कर रहे थे, तो बुद्धू शाह ने कहा की आपको अगर इतना ही तरस आया है मुझ गरीब पे तो आप मुझे अपना कंघा और उस में लगे हुए केश दान कर दो, इतना सुनते ही गुरु गोबिंद सिंह जी ने, कंघे समेत केश, बुद्धू शाह की झोली में डाल दिए!

जब बुद्धू शाह घर आया तो उसकी बेगम नसरीन ने पूछा की मेरे बेटे कहाँ हैं, इस पर बुद्धू शाह ने जो जवाब दिया वो उन सभी सिक्खों के लिए एक सबक है जो अपने केश कटाते हैं और अपने आप को गुरु का सिख कहलवाते हैं!

बुद्धू शाह ने कहा, "नसरीन, मैं अपनी ज़िन्दगी के सब से बड़ी कमाई, सब से बड़ी कीमती चीज़ अपने बेटे, गुरु गोबिंद सिंह को सौंप आया हूँ, और गुरु गोबिंद सिंह की सब से कीमती चीज़, उनके केश, अपने साथ ले आया हूँ"

इतना प्रेम करते थे गुरु गोबिंद सिंह जी अपनी सिक्खी से, और आज न जाने क्या हो गया है, फैशन के चक्करों में पड़ कर सिख अपने केशो की बे-अदबी करने से भी नहीं चूकते! गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिक्खी के लिए अपने चारों बेटे कुर्बान कर दिए और आज हम उनकी दी हुई सिक्खी को ही नहीं संभाल पा रहे हैं!

वाहेगुरु हम सब पापियों को सद-बुद्धि दें!

वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फ़तेह!

सोमवार, 3 जनवरी 2011

माँ तुझे सलाम!

वक़्त भी न जाने कैसे बदल जाता है....जब हम छोटे थे और कोई हमारी बात नहीं समझता था, तब सिर्फ एक ही हस्ती थी जो हमारे टूटे फूटे अल्फाजों को भी समझ जाती थी, और आज हम उसी हस्ती से कहते हैं, "आप नहीं जानती", "आप नहीं समझ पाएंगी", "आपकी बातें मुझे समझ नहीं आती", "लो अब तो आप खुश हो न", इस आदरणीय शख्सियत की इज्ज़त करें, इस से पहले की ये साथ ख़त्म हो!

सख्त रास्तों में भी आसान सफ़र लगता है,

ये मुझे मेरी माँ की दुआओं का असर लगता है,

एक मुद्दत से मेरी माँ सोयी नहीं है,

जब से मैंने एक बार कहा था, माँ-मुझे डर लगता है!