मंगलवार, 25 अगस्त 2009

सिर्फ़ तेरे लिए!

बस इक बार जो तेरी हाँ हो जाए,
सपनो का महल तेरे लिए बनाऊंगा,
बर्क़तों से गुलज़ार ये जहाँ हो जाए,
तेरे सजदे में ये दिन रात बिताऊंगा,
दुनिया से चुरा के तुझ को मैं,
दिल की खामोश परतों पे सुलाऊंगा,
धडकनों का एहसासतेरे दिल को करा के,
तेरी साँसों को अपनी साँसों से मिलाऊंगा,
मयकश की तरह तेरी आँखों में डूब के,
मद के नशीले जाम पिए जाऊंगा,
होशो-हवास खो के जब गिरने लगूंगा,
यकीन है ख़ुद को तेरी बाहों में पाउँगा,
मस्जिद में सर झुका के जब दुआ करूँगा,
ता-उम्र तेरे संग रहने की फरियाद लगाऊंगा!

रविवार, 23 अगस्त 2009

यह सब क्या हैं तेरे आगे!

ये चाँद सितारे और फूल खिलखिलाते,
ये सब क्या हैं तेरे आगे,
गुलाब की पंखुडियां और भवरे मंडराते,
ये सब क्या हैं तेरे आगे,
सूरज की मीठी तपिश में पक्षी चेहचाहाते,
ये सब क्या हैं तेरे आगे,
पहाडों से छम छम ये झरने लहलहाते,
यह सब क्या हैं तेरे आगे,
मयकश साकी की शान में बंदिशें सुनाते,
यह सब क्या हैं तेरे आगे,
पीर खुदा के सजदे में कलमे जो गाते,
यह सब क्या हैं तेरे आगे,
जन्नत-ऐ-हूर भी तेरे हुस्न के चर्चे गाते,
यह सब क्या हैं तेरे आगे!

बुधवार, 19 अगस्त 2009

कितना आसान होता है न!

जन्मों जन्म के वादे बना के,
ख्वाबों की मीठी बातें सुना के,
कितना आसान होता है न रिश्तों को यूं तोड़ देना,
ज़िन्दगी के हर क़दम साथ निभा के,
लडखडाते क़दमो से बाहों में उठा के,
कितना आसान होता है न राहों को यूं मोड़ देना,
गुमनामियों की गर्त में रौशनी दिखा के,
फिर कलाई पे अपनी नाम मेरा लिखा के,
कितना आसान होता है न बीच राह यूं छोड़ देना,
ज़माने से छुप छुप संग मेरे घूम के,
लरज़ते लबों से मेरे लबों को चूम के,
कितना आसान होता है न किसी और से नाता जोड़ लेना,
आखिरी वक्त तुझे देखने की आरजूएं सजा के,
फिर हमेशा की तरह तुझे न करीब पा के,
कितना आसान होता है न साँसों की ज़ंजीर यूं तोड़ देना!

मंगलवार, 18 अगस्त 2009

शायद फिर न उठ पाऊँ!

क्या मिला मुझे दुनिया में अपने होने के बाद,

अश्कों ने साथ छोड़ दिया हर पल रोने के बाद,

किया करते थे गुमां जिनकी दोस्तियों पे हम,

न रहे वो भी अपने सब कुछ खोने के बाद,

अब क्यों मैं हर पल हँसता हूँ रोने का बाद,

क्या जीना फिर भी पड़ता है खोने के बाद,

जाते जाते मेरा आखिरी सलाम तू ले जा,

शायद फिर न उठ पाऊँ रात सोने के बाद!

मंगलवार, 11 अगस्त 2009

कुछ दिन और बरसे!

शोखी से वो सज संवर के निकले हैं घर से,
सुकून मिला इन आखों को जो कब से तरसे,
पलकें झुकायें मौसीकी में चले जाते हैं वो,
खुदाया एक बार देख लें मुहब्बत की नज़र से,
जुल्फों के घने लच्छे लहराए कुछ इस तरह,
बेशर्म होके दुपट्टा भी उड़ गया हो सर से,
दुआ करू वो आए और लग जाए गले से,
किसी और नही कम से कम बिजली के डर से,
ना जाने दूँ उसे मैं दूर इन आगोशियों से,
खुदा बादल से कह दो के कुछ दिन और बरसे!

सोमवार, 10 अगस्त 2009

बन न पाया काजी!

इश्क के क़ल्मे पढ़ पढ़ बैठा न बन पाया काजी,

उम्रो उम्र मदीने फिर के न बन पाया हाजी,

तेरे जानिब सजदे करके न जित पाया बाजी,

तलवारों के महरम सदके न बन पाया गाजी,

सूखे फूलों की तासीर को न कर पाया ताज़ी,

हाथों में दिल रख भी तुझको न कर पाया राज़ी,

हिना-ऐ-मुल्हिद भी न तेरे हाथों पर थी साजी,

बिन तेरे मेरी रूह भी कर गई मुझ से दगाबाजी!

गुरुवार, 6 अगस्त 2009

दर्द!

जमात में मेरे मरने पर रोने वालो की कमी नही थी,
दफ़नाने मेरी मिटटी को किस्मत में दो गज ज़मी नही थी,
हलकी हलकी सी नमी तो बदन को महसूस हुई लेकिन,
मेरे जाने की खुशबु ऐ गम अभी पूरी तरह रमी नही थी,
शायद तेरे इंतज़ार में जो अश्को के दरिया बहाए,
मर के भी रफ़्तार उनकी दिल में मेरे थमी नही थी,
गर इक बार तू जनाजे पे नज़र-ऐ-इनायत कर देती,
ख्वाहिश पूरी हो जाती जो बर्फ नुमा जमी नही थी,
बस अब चलते हैं सफर पूरा कर के इस दुनिया का,
धुंधली हो गयी आरजूएं जो शायद कभी घनी नही थी!

मंगलवार, 4 अगस्त 2009

बारिश के इंतज़ार में!

बेदर्दी ये बादल कैसे जाने कहाँ पे बरस गए,
कब से हैं उम्मीद लगाए नैन भी अब तो तरस गए,
उमस भरी गर्मी की दुपहरिया जला के चली जाती है,
हर वक्त पसीना पी पी के होठ भी अब तो लरज़ गए,
फसलें भी अब सूख गई हर पत्ता झड़ के गिरता है,
तब भी न पसीजा दिल तेरा आए और बस गरज गए,
क्या बोयेंगे किसान भाई और क्या वोह हमें खिलाएंगे,
इक तेरी जो टेढी नज़र हुई जागीरों में बस क़र्ज़ गए,
अब तो बरसो यूं टूट के रिम झिम कर दो बगिया को,
हर ज़र्रा खुशी से गा उठे और पूरे तेरे फ़र्ज़ हुए!

रविवार, 2 अगस्त 2009

फ्रेंडशिप डे पर कुछ ख़ास!

आज है दोस्ती दिवस सोचा के कुछ दोस्त बना लें,
जो रूठे हैं काफ़ी दिनों से आओ चलो उन्हें मना लें,
येही सोच के आज सुबह उन्हें इक संदेश भेजा,
दिन में रात न हो जाए गर वो उस पे नज़र भी डालें,
न जाने क्या खता हुई जो वो इस कदर खफा हैं,
गनीमत है जो सामने से निकले और नज़र मिला लें,
गर गुनाह हुआ है हमसे तो कम से कम बताएं ज़रा,
ऐसे कैसे हम अपने आप को गुनेहगार बना लें,
सोचा था की चलो आज उन्हें मना ही लेंगे हम,
दिन ढलते ही ये आलम है बस ये कड़वी यादें भुला लें,
उम्मीद में की अगले दोस्ती दिवस पे कुछ वक्त संग बिताएं,
आओ खुदा से उनकी सलामती की दुआ मना लें!