गुरुवार, 6 जून 2013

न जाने क्यों!

क्या अजीब से हालात हैं कि वक़्त नहीं कटता 
निगाहों के सामने से तेरा चेहरा नहीं हटता 
लगता है जैसे ज़माना हुआ तुझे देखे हुए मुझको
यूं बे-वजह ही दिल से गुबार-ए-ग़म नहीं फटता 
हैरान हूँ उन कसमों के मयस्सर होने की नीयत पे 
जो कहती थी तुझे देखे बिना ये दिल नहीं धडकता 
बातें थी शायद बस तेरी बातें ही होंगी वो 
बातों में अब वो पहले सा जुनूँ  नहीं दिखता 
वक़्त है ये वक़्त जो हर शै से है जबर 
इस वक़्त के आगे कोई वादा नहीं टिकता 
काश तू देख पाती चाक-ए-जिगर मेरे 
ना जाने कितने कतरे बहे खूं  नहीं रुकता 
शायद तुझे लगता है ये की बस बहाने हैं 
और मैं तुझे कभी कहीं समझ नहीं सकता 
तू बेखबर है हालत से मेरी जा ओ बेवफा 
सासें हवा सी ले रहा हूँ जी नहीं सकता 
तेरी नज़र में खो चुका हूँ काबिलियत इस क़दर 
बदनसीबी है की अब तुझे हासिल हो नहीं सकता