मंगलवार, 16 अक्तूबर 2012

ज़िंदगी से इक मुलाक़ात !

ये गुस्ताखियाँ हैं तेरी जुल्फों में क़ैद ओस की बूदों की
जिनके महासल(1) बने दरिया ने मुझे इक नज़्म लिखा दी 
तेरे सजदे में ग़ुम हो के जो पलकें मूंदी मैंने 
उस एहसास ने ही मुझे नफीस(2) जन्नत दिखा दी 
गेज़ाल(3) सी तेरी आँखों की शोखी ने यकायक 
ख़्वाबों से जगा साकी बिन मुझे मय सी पिला दी 
तेरे आँचल की इक लहर जो वीरानो से निकली थी कभी 
ना जाने कितनी उस ने क़ब्रों में सोयी रूहें ज़िला दीं 
तेरे क़दमों की आहट जैसे खनकते घुंघरुओं ने 
बाखुदा सहराओं(4) में भी मस्त इक महफ़िल खिला दी 
इल्तेजा है खुदा से तेरी नज़र-ए-इनायत हो मुझ पे 
यूं लगेगा मुझे के खुदा ने ज़िंदगी मिला दी!

(1) परिणाम स्वरुप (2) जगमगाती (3) हिरनी जैसी (4) रेगिस्तान