सोमवार, 5 अगस्त 2013

निशानियाँ

यूं तिनकों सी बिखरी हुई मेरी आराइश (१)
खूबसूरत रात की दास्ताँ कहती है
तेरे जाने के बाद भी पहरों तक
मेरे लबों पे इक जुम्बिश (२) रहती है
गेसुओं में तेरी उँगलियों की हरारत
 हर ज़ुल्फ़ उनछुई सिहरन सहती है
लरजती पलकों पे तेरे लबों की आहट
किसी शरारत की कहानी कहती है
तेरे आगोश में आकर टूट जाने की
उस वक़्त बस यही कोशिश रहती है
कि डूब जाऊं तुझ में  इस तरह से मैं
जैसे रेत दरिया के चश्मों संग बहती है
न जाने फिर कब आयेगा तू और
खूबसूरत सा वो मिलन होगा
कुछ तो छोड़ जाने की भी
दुनिया की रवायत (३) कहती है
चल कुछ और नहीं तो बस तू फिर
लबों पे गवाही छोड़ जाना
सुना है कि कुछ ख़ास गवाहियां
बन के निशानियाँ रहती हैं

शब्दार्थ : (१) साज-सज्जा (२) एह्साह (३) रस्म

मंगलवार, 2 जुलाई 2013

कुछ अनछुए पहलू!

तन्हाइयों में घिरा कुछ सुकून की तलाश में
सोचा इक खामोश सा कमरा ढूंढ लूं मकान में
खुशकिस्मती से इक कोठरी मिली जिसे खोला तो देखा
उसमें मेरे बचपन का हर लम्हा बिखरा हुआ है
ये लम्हे अब मेरी तन्हाइयों के हमसफ़र हैं
जिन्हें ना जाने कब से किस किस हवा ने छुआ है
जब समेटने लगा मेरी लिखी कुछ नज्मों की परतें
पाया हर एक पुलिंदा दूसरे से चिपका सा हुआ है
मानो कह रहा हो जुदाई के डर  से वो मुझ से
ना कर अलग साँसों का रिश्ता जुड़ा हुआ है
सोचा था ये पन्ने मेरी हाजत-रवाई(१) करेंगे
पर इन्होने तो वादा-ए-वफाई किया हुआ है
काश हम भी इन पुराने कतरों नुमाँ (२) होते
जो रवायत (३) समझ खुदा ना बनाते बनाते खुद को
अफ़सोस बड़ी देर लगी ये हकीकत समझने में
की क्या खुदा भी कभी किसी एक का हुआ है

शब्दार्थ : (१) एक दूसरे को समझना (२) की तरह (३) परंपरा

गुरुवार, 6 जून 2013

न जाने क्यों!

क्या अजीब से हालात हैं कि वक़्त नहीं कटता 
निगाहों के सामने से तेरा चेहरा नहीं हटता 
लगता है जैसे ज़माना हुआ तुझे देखे हुए मुझको
यूं बे-वजह ही दिल से गुबार-ए-ग़म नहीं फटता 
हैरान हूँ उन कसमों के मयस्सर होने की नीयत पे 
जो कहती थी तुझे देखे बिना ये दिल नहीं धडकता 
बातें थी शायद बस तेरी बातें ही होंगी वो 
बातों में अब वो पहले सा जुनूँ  नहीं दिखता 
वक़्त है ये वक़्त जो हर शै से है जबर 
इस वक़्त के आगे कोई वादा नहीं टिकता 
काश तू देख पाती चाक-ए-जिगर मेरे 
ना जाने कितने कतरे बहे खूं  नहीं रुकता 
शायद तुझे लगता है ये की बस बहाने हैं 
और मैं तुझे कभी कहीं समझ नहीं सकता 
तू बेखबर है हालत से मेरी जा ओ बेवफा 
सासें हवा सी ले रहा हूँ जी नहीं सकता 
तेरी नज़र में खो चुका हूँ काबिलियत इस क़दर 
बदनसीबी है की अब तुझे हासिल हो नहीं सकता