गुरुवार, 22 जुलाई 2010

तेरी पायल की छम छम!

दोस्तों,
मेरी पुरानी रचना "बेगाने हो गए" पढने के बाद मेरी एक मित्र ने कहा की आप इस बार कुछ ऐसा लिखिए जिस से अपनेपन का एहसास हो माने जब दो प्रेम करने वालों का मिलन हो रहा हो और प्रेमी अपने दिल की बात अपनी प्रेमिका को ज़ाहिर करे!
कोशिश की है मैंने की शायद मैं अपनी इस रचना के साथ इन्साफ कर पाऊँ, बाकी आप सभी की प्रतिक्रिया बताएगी!
तो पेश-ए-खिदमत है:

"तेरी पायल की छम छम"

कितने अरसे के बाद सुनी,
तेरी पायल की छम छम,
हर वक़्त इल्तेजा करते थे,
इंतज़ार हुआ है ख़तम,
तेरे चेहरे को हाथों में ले,
ठगे से रह गए हम,
इस नूरानी रुखसार के आगे,
चाँद भी पड़ गया नम,
दो नैना ये दरिया की तरह,
कहीं डूब न जाएँ हम,
दो लब ये गुलाब की पंखुड़ी से,
इस दिल पे ढाएं सितम,
एहसास तेरा जादुई सा,
पत्थर को कर दे नरम,
तू चलती फिरती नज़्म मेरी,
किस काम की है ये कलम,
हर सू तेरे सजदे में रहूँ,
चाहे सासें बची हों कम,
फ़रियाद खुदा से करता हूँ,
कभी जुदा न हों बस हम!

सोमवार, 19 जुलाई 2010

बेगाने हो गए!

तेरी यादों ने यूं खब्त(१) कर दिया,
खुशियाँ गर्त और ग़म पहचाने हो गए,
महफ़िल में बैठे भी मुझे लगा ऐसे,
दश्त-ओ-दरिया(२) में मेरे ठिकाने हो गए,
जो कमरे मेरे घर इबादत के लिए थे,
जाने किस तरह से अब मयखाने हो गए,
खूगर(३) तेरी कशिश का मैं पहले ही था,
तेरे ग़म में बस पीने के बहाने हो गए,
ज़माने की रजीलियों(४) की क्या मिसाल दूं,
हर लफ्ज़ जैसे तीर के निशाने हो गए,
इक वक़्त था जो दोस्त भी होते थे साथ में,
खुद के साए भी अब तो बस बेगाने हो गए!

(१) पागल (२) रेत का समंदर (३) आदी (४) मतलबीपन