गुरुवार, 22 जुलाई 2010

तेरी पायल की छम छम!

दोस्तों,
मेरी पुरानी रचना "बेगाने हो गए" पढने के बाद मेरी एक मित्र ने कहा की आप इस बार कुछ ऐसा लिखिए जिस से अपनेपन का एहसास हो माने जब दो प्रेम करने वालों का मिलन हो रहा हो और प्रेमी अपने दिल की बात अपनी प्रेमिका को ज़ाहिर करे!
कोशिश की है मैंने की शायद मैं अपनी इस रचना के साथ इन्साफ कर पाऊँ, बाकी आप सभी की प्रतिक्रिया बताएगी!
तो पेश-ए-खिदमत है:

"तेरी पायल की छम छम"

कितने अरसे के बाद सुनी,
तेरी पायल की छम छम,
हर वक़्त इल्तेजा करते थे,
इंतज़ार हुआ है ख़तम,
तेरे चेहरे को हाथों में ले,
ठगे से रह गए हम,
इस नूरानी रुखसार के आगे,
चाँद भी पड़ गया नम,
दो नैना ये दरिया की तरह,
कहीं डूब न जाएँ हम,
दो लब ये गुलाब की पंखुड़ी से,
इस दिल पे ढाएं सितम,
एहसास तेरा जादुई सा,
पत्थर को कर दे नरम,
तू चलती फिरती नज़्म मेरी,
किस काम की है ये कलम,
हर सू तेरे सजदे में रहूँ,
चाहे सासें बची हों कम,
फ़रियाद खुदा से करता हूँ,
कभी जुदा न हों बस हम!

23 टिप्‍पणियां:

  1. तू चलती फिरती नज़्म मेरी,
    किस काम की है ये कलम

    Badhiyaa! bahut badhiyaa! :-)

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  2. फ़रियाद खुदा से करता हूँ,
    कभी जुदा न हों बस हम!
    इसके लिये तो मेरा भी आशीर्वाद ले लो। बहुत अच्छी लगी कविता। बधाई

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  3. कितने अरसे के बाद सुनी,
    तेरी पायल की छम छम,
    हर वक़्त इल्तेजा करते थे,
    इंतज़ार हुआ है ख़तम,
    --
    इन्तजार के बाद के लम्हों को
    आपने बहुत खूबसूरती से अपनी शायरी में सँवारा है!
    --
    बढ़िया रचना लिखी है आपने!

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  4. हर वक़्त इल्तेजा करते थे,
    इंतज़ार हुआ है ख़तम,

    क्या बात है,
    लाज़बाब....

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  5. आपकी इस रूमानी रचना ने दिल लूट लिया...वाह...वा...
    नीरज

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  6. तू चलती फिरती नज़्म मेरी,
    किस काम की है ये कलम,
    हर सू तेरे सजदे में रहूँ,
    चाहे सासें बची हों कम,

    -वाह!! शानदार..

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  7. वाह वाह्…………………बहुत ही रूमानी रचना है……………दिल मे उतर गयी।

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  8. Maashaah-allah :)

    "Mat pooch ke kya haal hai mera tera peechey!!" -- yeh line yaad aa gayi mujhe :)
    Maine toh gaayi bhi ;-) aur aapne suni bhi :D

    Bahut achha likha SC... tussi great ho!

    Regards,
    Dimple

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  9. तू चलती फिरती नज़्म मेरी,
    किस काम की है ये कलम,
    हर सू तेरे सजदे में रहूँ,
    चाहे सासें बची हों कम,

    -UMDA

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  10. फ़रियाद खुदा से करता हूँ,
    कभी जुदा न हों बस हम!
    अच्छी लगी कविता लाज़बाब....

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  11. इल्तजा कबूल हुई आखिर और सुन ली पायल की छम - छम ..
    सुन्दर !

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  12. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  13. what a brilliant ending:

    तू चलती फिरती नज़्म मेरी,
    किस काम की है ये कलम,
    हर सू तेरे सजदे में रहूँ,
    चाहे सासें बची हों कम,
    फ़रियाद खुदा से करता हूँ,
    कभी जुदा न हों बस हम!

    Its not that I didn't like the rest of the poem but somehow I felt that these are the most powerful. Great going!

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  14. कितने अरसे के बाद सुनी,
    तेरी पायल की छम छम,
    हर वक़्त इल्तेजा करते थे,
    इंतज़ार हुआ है ख़तम,
    तेरे चेहरे को हाथों में ले,
    ठगे से रह गए हम,
    Kya khoob kaha hai! Insaaf to poora kiya hai,rachana ke saath!

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  15. फ़रियाद खुदा से करता हूँ,
    कभी जुदा न हों बस हम!

    जोड़ी सलामत रहे जी आपकी .....!!

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  16. सुरेन्द्र "मुल्हिद" जी
    अच्छी रूमानी रचना है …
    तू चलती फिरती नज़्म मेरी

    भई , बहुत ख़ूब !

    और क्या संयोग है कि नज़्मों की राजकुमारी हरकीरत हीर जी का भी यहां दीदार हो रहा है …

    मेरी ओर से भी आपके लिए दुआएं हैं ।
    अच्छी कविता के लिए बधाई !
    स्वागत !
    शस्वरं पर भी आपका हार्दिक स्वागत है , आइए…
    शुभकामनाओं सहित …

    - राजेन्द्र स्वर्णकार
    शस्वरं

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  17. बहुत ही ख़ूबसूरत और उम्दा रचना लिखा है आपने! बधाई!

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  18. गेय रचना. इसे स्वर बद्ध करें, और स्वर भी दें.

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  19. मित्रता दिवस की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!

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