सोमवार, 29 जून 2009

हाँ वोह तुम ही हो.....

जिसे कभी ख्वाबो में तराशा था......दिल की गहराईयों में तलाशा था.....

हाँ वोह तुम ही हो......

दोस्तों से बातें किया करती थी.....जिसके बारे में सोच के लम्बी रातें किया करती थी....

हाँ वोह तुम ही हो.........

छुप छुप के जिस से मिलती थी.....तन्हाई में तारे गिनती थी....

हाँ वोह तुम ही हो.......

घरवालो से जिसे मिलाने से डरती थी.....इसी बात को सोच कर तिल तिल मैं हर पल मरती थी......

हाँ वोह तुम ही हो.......

फ़िर एक दिन बड़ी मुश्किल से हिम्मत जुटा पायी.....बाबा को जिसके बारे में बता पाई.....

हाँ वोह तुम ही हो......

फिर वोह दिन भी आया जब तुम बरात ले आए....मेरे जीवन में खुशियों की सौगात ले आए....

हाँ वोह तुम ही हो........

अब जिसकी बाहों में हर वक्त मुझे रहना है.....मिल के जिसके साथ दुनिया का हर सुख दुःख सहना है......

हाँ वोह तुम ही हो.......

ये दुआ करती हूँ खुदा से जो हमेशा सलामत रहे.....जिसकी लम्बी उम्र मेरी ज़िन्दगी की सबसे बड़ी नेयामत रहे....

हाँ वोह तुम ही हो.......

तुम कभी मुझे तड़पता छोड़ नही जाना......कभी दिल को मेरे यूं तोड़ नही जाना........

जिसकी मोहब्बत मेरे दिल में पलती है.....जिसको साँसों से मेरी साँसे चलती हैं.....

हाँ वोह तुम ही हो.......हाँ वोह तुम ही हो.......

नज़र आता है!!

सुबह की पहली किरण के साथ तेरा चेहरा नज़र आता है....
आईने में जब भी ख़ुद को देखूं तेरा साया गहरा नज़र आता है.....
घर के बगीचे में तुझे फूल समझ के जब भी छूना चाहू......
कमबख्त तेरे आस पास भवरों का पहरा नज़र आता है.....
कभी चुपके से आँखें बंद कर तेरे बारे में जब सोचूँ.......
मैकदे में नशेमन मेरा बस लहरा नज़र आता है....
तेरी झील जैसी आँखों में जब उतरने को जी चाहे......
कुछ ओस की बूंदों का छरहरा नज़र आता है......
उस वक्त का इंतज़ार है जब तू मेरे घर आए......
मेरी माँ के हाथों में मुझे बस सेहरा नज़र आता है.....

आहट !

कभी अचानक इक आहट के बदले हम नींद उडाये जाते हैं....
वोह जो हो चुके हैं हमसे दूर उन्हें खयालो में लाये जाते हैं......
जो ख़ुद बुझा गए हैं इस दिल से मुहब्बत के चरागों को.....
हम क्यों ठंडी पड़ी राख से शम्मा को जलाए जाते हैं.....
इक वक्त था जब उन्ही से सुबह और उन्ही से रात होती थी.....
अजनबियों से भी गाहे बगाहे उन्ही की बात होती थी.......
अब वक्त ने ही कुछ ऐसे करवट ले ली मुझे जताने को.....
अजनबियों में ही उन्हें पाने की आस लगाए जाते हैं......
चलो घड़ी भी आ गई है इस duniya से rukhsat honay की......
ruhani jannat के intezaar में तेरी मुहब्बत की jannat khone की.....
तू जिस हाल में rahey हमेशा muskuraati rahey......
मर के भी तेरी salamati की खुदा से दुआ किए जाते हैं.....

शुक्रवार, 26 जून 2009

अपने बहुत याद आते हैं

कुछ वक्त हुआ है दूर हुए.......पर अपने बहुत याद आते हैं....
कुछ थक के हम यूं चूर हुए.....पर अपने बहुत याद आते हैं....
हैं लोग बहुत आगे पीछे.....पर अपने बहुत याद आते हैं....
कोई यहाँ कोई वहां खीचे....पर अपने बहुत याद आते हैं....
तंदूर की मिटटी की खुशबु....यकलख्त कभी आ जाती है.....
वोह माँ के हाथ की रोटी की....यादों को संजो ले आती है......
माँ जैसे तो है बहुत मिले.....जो लोरी गा के सुनाते हैं......
फिर भी अधूरी ख्वाहिश है....पर अपने बहुत याद आते हैं....
कुछ लम्हे कहूं ख़ुद पे बीते.......हर वक्त मुझे तद्पाते हैं....
कुछ पाकर मैंने सब खोया......तन्हाई में आंसू बहाते हैं......
कुछ दोस्त मिले हैं अपनों से....अपनों की कमी भर जाते हैं....
सोते हैं यादों संग उनकी.....पर अपने बहुत याद आते हैं....

खुद ही को न समझ पाए

क्या चाहत रक्खी ज़िन्दगी से ...खुद ही को न समझ पाए....
सोचा था सब कुछ पा लेंगे हम .....खुद ही को न समझ पाए ....
क्यों रक्खी उमीदें दूसरों से ...... खुद ही को न समझ पाए ....
बस दर्द हुआ जब टूटे ख्वाब..... खुद ही को न समझ पाए ....
अपनों ने ही क्यों छोड़ा साथ.....खुद ही को न समझ पाए ....
छोडेगी नही यूं पीछा याद........खुद ही को न समझ पाए ....
अब वक्त आ गया जाने का.....खुद ही को न समझ पाए ....
वीराना सा क्यों है कब्र पर......खुद ही को न समझ पाए ....
खुदा भी शायद न समझेगा...खुद ही को न समझ पाए ....




tasveer-e-yaar

दिल के आईने में तस्वीर-ऐ-यार है....
फिर भी आज तक हमें बस इंतज़ार है......
लाख कहे ज़माना हमें दीवाना चाहे.....
यह दिल तेरी राहों का इक खाकसार है....
दीवानों को यह दुनिया करती रही है रुसवा.....
दुनिया के इन दिलों में शैतान सवार है......
तेरी राह से तो अब बस कजा दूर करेगी.....
क्योकि वोह अब हमारइ इक कर्ज़दार है.....