शुक्रवार, 26 जून 2009

खुद ही को न समझ पाए

क्या चाहत रक्खी ज़िन्दगी से ...खुद ही को न समझ पाए....
सोचा था सब कुछ पा लेंगे हम .....खुद ही को न समझ पाए ....
क्यों रक्खी उमीदें दूसरों से ...... खुद ही को न समझ पाए ....
बस दर्द हुआ जब टूटे ख्वाब..... खुद ही को न समझ पाए ....
अपनों ने ही क्यों छोड़ा साथ.....खुद ही को न समझ पाए ....
छोडेगी नही यूं पीछा याद........खुद ही को न समझ पाए ....
अब वक्त आ गया जाने का.....खुद ही को न समझ पाए ....
वीराना सा क्यों है कब्र पर......खुद ही को न समझ पाए ....
खुदा भी शायद न समझेगा...खुद ही को न समझ पाए ....




4 टिप्‍पणियां:

  1. Very nice!

    I wish you keep on writing good day by day...

    Regards...

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  2. खुदा भी शायद न समझेगा...खुद ही को न समझ पाए ....

    Very true..

    जवाब देंहटाएं
  3. kise ke liye sawal ....to main kise ke liye jawab hu ...

    kise ke liye haqikat to kise ka main qhawab hu ...

    kise ke liye "KAUN "

    aur kise ke liye "KEEETAB " HU.


    soch kar dekhegne kabhi furasat main hum bhi...
    kaun hai apne liye aur kis ke liye hum kaun hai !!!!

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