बुधवार, 18 मई 2011

किसी ख़ास के लिए....

तू मेरी चाहत का यूं ही इम्तेहान न ले ओ ज़ालिम
तेरे दिल में समंदर सा प्यार न भर दूं तो कहना
कुछ ऐसा कर दूंगा की आकिबत(१) में तू ढूंढे मुझे
बाहों में टूटने को मजबूर न कर दूं तो कहना
ये जो सज संवर के निकलते हो दिखावटी चिलमन ओढ़े
इसे फ़ाज़िल(२) निगाहों से तार-तार न कर दूं तो कहना
अभी तो तुझ से रू-ब-रू ही करता रहता हूँ मैं
इक दिन इज्तेमा-ए-महफ़िल(३) इज़हार न कर दूं तो कहना
तेरी हर ख्वाहिश को पूरा करने की कोशिश में
दिखता तो जो बस एक है, वो चाँद चार न कर दूं तो कहना
तू तो बस मुझे वो नादिर(४) मुहब्बत के दो फूल दे दे
उन्ही दो फूलों से दामन गुलज़ार न कर दूं तो कहना
जो तू साथ न छोड़े ता-उम्र मेरा ए मुश्फिक(५)
मौत के फ़रिश्ते को भी इनकार न कर दूं तो कहना
इतनी कशिश है मेरी मुहब्बत की तासीर में
दूर हो के भी तुझ पे असर न कर दूं तो कहना!

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(१) पुनर्जन्म (२) तेज़, शातिर (३) हजारों लोगो की भीड़ (४) खूबसूरत (५) दोस्त
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