मंगलवार, 4 अगस्त 2009

बारिश के इंतज़ार में!

बेदर्दी ये बादल कैसे जाने कहाँ पे बरस गए,
कब से हैं उम्मीद लगाए नैन भी अब तो तरस गए,
उमस भरी गर्मी की दुपहरिया जला के चली जाती है,
हर वक्त पसीना पी पी के होठ भी अब तो लरज़ गए,
फसलें भी अब सूख गई हर पत्ता झड़ के गिरता है,
तब भी न पसीजा दिल तेरा आए और बस गरज गए,
क्या बोयेंगे किसान भाई और क्या वोह हमें खिलाएंगे,
इक तेरी जो टेढी नज़र हुई जागीरों में बस क़र्ज़ गए,
अब तो बरसो यूं टूट के रिम झिम कर दो बगिया को,
हर ज़र्रा खुशी से गा उठे और पूरे तेरे फ़र्ज़ हुए!

10 टिप्‍पणियां:

  1. kya usne baat suni aapki.....
    nahi na..
    kyuki use aisa karne ke liye humne hi uksaya hai..
    uski khubsoorat dharti ko humne hi nuksaan pahuchaaya hai

    http://som-ras.blogspot.com

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  2. बहुत बडिया रचना है और सोमादरी जी से बिलकुल सहमत हूँ आभार और शुभकामनायें

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  3. Sundar..! Baarish nahee to jeevan nahee...par hamne qudrat ke saath khilwaad kiya hai...bhugat rahe hain..!

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  4. अत्यन्त सुंदर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लिखी हुई आपकी ये रचना बहुत अच्छी लगी!

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  5. No Rain ... is the pain
    Without it we can never gain

    Nice creation.
    Great day. Bbye

    Regards,
    Dimple
    http://poemshub.blogspot.com

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