बेदर्दी ये बादल कैसे जाने कहाँ पे बरस गए,
कब से हैं उम्मीद लगाए नैन भी अब तो तरस गए,
उमस भरी गर्मी की दुपहरिया जला के चली जाती है,
हर वक्त पसीना पी पी के होठ भी अब तो लरज़ गए,
फसलें भी अब सूख गई हर पत्ता झड़ के गिरता है,
तब भी न पसीजा दिल तेरा आए और बस गरज गए,
क्या बोयेंगे किसान भाई और क्या वोह हमें खिलाएंगे,
इक तेरी जो टेढी नज़र हुई जागीरों में बस क़र्ज़ गए,
अब तो बरसो यूं टूट के रिम झिम कर दो बगिया को,
हर ज़र्रा खुशी से गा उठे और पूरे तेरे फ़र्ज़ हुए!
kya usne baat suni aapki.....
जवाब देंहटाएंnahi na..
kyuki use aisa karne ke liye humne hi uksaya hai..
uski khubsoorat dharti ko humne hi nuksaan pahuchaaya hai
http://som-ras.blogspot.com
quite realistic composition...
जवाब देंहटाएंबहुत बडिया रचना है और सोमादरी जी से बिलकुल सहमत हूँ आभार और शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंSundar..! Baarish nahee to jeevan nahee...par hamne qudrat ke saath khilwaad kiya hai...bhugat rahe hain..!
जवाब देंहटाएंsunder abhivyakti...
जवाब देंहटाएंखूबसूरत प्रस्तुति के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना है।
जवाब देंहटाएंबधाई।
अत्यन्त सुंदर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लिखी हुई आपकी ये रचना बहुत अच्छी लगी!
जवाब देंहटाएंgood one
जवाब देंहटाएंNo Rain ... is the pain
जवाब देंहटाएंWithout it we can never gain
Nice creation.
Great day. Bbye
Regards,
Dimple
http://poemshub.blogspot.com