अक्सर बैठे तन्हाई में,
सपनो को पुकार लेती हूँ,
कभी पंछी तो कभी पत्ते,
कभी किरने उधार लेती हूँ,
बागीचों के दामन में सजे,
फूलों की कतार लेती हूँ,
छम छम करते अम्बर से,
बारिश की फुहार लेती हूँ,
डोली ले जाते कहारों से,
दुल्हन का श्रृंगार लेती हूँ,
क्षितिज की कोमल सुबह से,
इक ठंडी बयार लेती हूँ,
बस इन सब एहसासों को मैं,
कागज़ पे निखार लेती हूँ,
माहिर हूँ मैं अपने फन की,
तस्वीर उतार लेती हूँ,
तस्वीर उतार लेती हूँ।