बुधवार, 28 अक्टूबर 2009

तस्वीर उतार लेती हूँ.

अक्सर बैठे तन्हाई में,

सपनो को पुकार लेती हूँ,

कभी पंछी तो कभी पत्ते,

कभी किरने उधार लेती हूँ,

बागीचों के दामन में सजे,

फूलों की कतार लेती हूँ,

छम छम करते अम्बर से,

बारिश की फुहार लेती हूँ,

डोली ले जाते कहारों से,

दुल्हन का श्रृंगार लेती हूँ,

क्षितिज की कोमल सुबह से,

इक ठंडी बयार लेती हूँ,

बस इन सब एहसासों को मैं,

कागज़ पे निखार लेती हूँ,

माहिर हूँ मैं अपने फन की,

तस्वीर उतार लेती हूँ,

तस्वीर उतार लेती हूँ।

12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...बहुत अच्छी रचना...
    नीरज

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  2. kya baat sir aaj bahut dino baad kalam uthaye ;-)
    achi composition hai, kuch bachpan main pari hui kaviton ki tarahn...
    कभी पंछी तो कभी पत्ते,
    कभी किरने उधार लेती हूँ,
    छम छम करते अम्बर से,
    बारिश की फुहार लेती हूँ,
    bariya lagi panktiyan...

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  3. एक बेहतरीन भावो से सज्जी और सवरी भी है आपकी रचना......जिसमे सिर्फ मासूम से पल है बहुत बहुत बधाई!

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  4. bahut sunder abhivaykti apne vicharo ki ki hai..har jaba dhadkata hua dil me samaya hai

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  5. bahut pyari rachna hai ye..

    just two lines for you..
    aap kitni khoobsurti se utar lete ho kisi ko
    apni ghazal mein..
    jaise apne apni surat pe koi aina laga rakha hai..

    really good.. likhte rahiye..

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  6. Waah !!! Bahut bahut bahut hi sundar rachna....

    Man mugdh kar liya iasne...aabhar.

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  7. बहुत ही सुंदर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लिखी हुई आपकी ये शानदार रचना काबिले तारीफ है!

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  8. बहुत बढ़िया शायरी है।
    इसकी चर्चा कल निम्न लिंक पर लगा रहा हूँ-
    http://anand.pankajit.com/

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  9. माहिर हूँ इस फन की तस्वीर उतार लेती हूँ ...खूबसूरत तस्वीर उतार ली है शब्दों के माध्यम से ...!!

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  10. "jab bhi dil se ehsaas chhalakne lagte hain
    ek geet bana leti hoon,
    aur kabhi na chah kar bhi apne alfazon ko
    khamoshi ke daaman mein samet leti hoon..."
    your poem insired me to write these line..thanks for sharing such an inspiring poem.

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