अभी कुछ दिन ही हुए तुम दूर गए,
लगता है अरसो से तुम पास नहीं हो,
गाहे-बगाहे सासें भी रुक रुक के आती हैं,
जैसे इन्हें भी तेरी साँसों बिना जीने की आस नहीं हो,
तुझ पे लिखी हुई बंदिशों का पुलिंदा उठाया,
सोचा पढ़ लूं तो दूरियों का एहसास नहीं हो,
ज़ालिम हर लफ्ज़ की तासीर ने यूं घायल किया,
जैसे उन्हें मेरी तन्हाईयों का एहसास नहीं हो,
कुछ और पन्ने पलटे तो इक सूखा गुलाब दिखा,
फिर याद आया अरे ये तो वही पहला गुलाब है,
जो डर डर के तुम्हें देने को तुम्हारी सहेली को दिया था,
दूर झरोखे से तुम्हें यूं देख रहा था जैसे,
नज़रें उठाने की भी हिम्मत पास नहीं हो,
तुमने फूल लिया और मैं दौड़ कर ऊपर के कमरे में गया,
छोटे से मंदिर में घी का दिया जलाते हुए,
रब को हाथ बांधे शुक्रिया करते हुए कहा,
भले ही मिलाना हज़ारों से पर ध्यान ये रखना,
के कोई तुम जैसा खासम-ख़ास नहीं हो,
खुशकिस्मती है आप ज़िन्दगी का हिस्सा हैं,
जो कभी भी ख़त्म न हो ऐसा एक किस्सा हैं,
इंतज़ार में हूँ तुम जल्द आओ और अपने रुखसार से,
कुछ यूं रौशन करो की गर्त में भी अँधेरे का एहसास नहीं हो!