रविवार, 17 जुलाई 2011

एहसास..........

चन्द रोज पहले उन से मुलाकात ने
कुछ ऐसा निशान दिल पे छोड़ दिया
यूँ लगा बिस्मिल्ला कर इलाही ने
दो अरवाहों(१) को इक दूजे से जोड़ दिया
वो मुझ में और मैं उन में
कुछ इस कदर से गुम थे हो गए
बस आगोशी की खुश्बू इन्तिशार(२) हुई
और शर्म-ओ-हया का चिलमन तोड़ दिया
क़रीबियत का एहसास रश्क-ए-जिनान(३) सा था
यकायक खुद को तेरी बाहों में तोड़ दिया
निकला था घर से खुदा की बन्दगी करने
मोहब्बत के फरिश्तों ने तेरी ग़ली मोड़ दिया
तू दूर है मुझसे फिर भी सांसों में रिहाइश है
तेरी तपिश के सिवा ना खुद को कुछ और दिया
यादों की नीव पे तामीर(४) ख्वाबों का घरौन्दा
आज मिल गया और महलों को मैने छोड़ दिया
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(१) आत्माओं (२) फैलना (३) जन्नत जैसा (४) खडा किया हुआ
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