सोमवार, 20 फ़रवरी 2012

गाहे-बगाहे हैं!

चलते चलते इतनी दूर चला आया मैं


फिर भी लगती अजनबी सी राहें हैं

लाख नज़ारे देखे होंगे राह-ए-सफ़र में

ना जाने क्यों फिर भी सूनी सी निगाहें हैं

यूं तो तेरी यादों को साथ ले के चला था

अब गहराइयों में दिल की सिसकती सी आहें हैं

तुझे आगोश में लेने की बस तम्मना रह गयी

आज भी तेरे इंतज़ार में खुली मेरी बाहें हैं

ना जाने कब फरिश्तों की नगरी से बुलावा हो

सुना था वहाँ रहती मोहब्बत-ए-पाक अरवाहें हैं

इक तुझसे प्यार किया तो पहचान थी अपनी

आज दुनिया की नज़रों में हम गाहे-बगाहे हैं!