गर चाँद से मुखड़े का दीदार दे दे,
तेरा कौन सा कोई खर्चा होगा,
चार जगह तेरी तारीफ कर दूंगा,
हर तरफ़ बस तेरा चर्चा होगा,
तुझे देखने के लिए कतारें लगेंगी,
सभी के हाथ अर्जी का पर्चा होगा,
तेरी जुल्फों का घना साया देख,
बादल घुमड़ घुमड़ गरजा होगा,
तेरे लबों की नक्काशी करने वाला भी,
इक बार इन्हे चूमने को तरसा होगा,
तराशते ईमान खुदा का भी डोला होगा,
तभी खुशी में बादल बेपनाह बरसा होगा!
बुधवार, 23 सितंबर 2009
शुक्रवार, 18 सितंबर 2009
कुछ चुनिंदा पल!
तेरी यादों के समंदर से कुछ चुनिंदा पल चुराए हैं,
जिन्हें सिराहने रख कर कुछ मीठे ख्वाब पाये हैं,
ख्वाबो में डूबा जन्नत में इतनी दूर चला गया,
के फ़रिश्ते मुझे अब घर मेरे छोड़ने आए हैं,
जब भी तेरे एहसास को महसूस मैं करूँ,
लगे कि कलियाँ ख़ुद को जैसे फूल बनाये हैं,
मयकदे में साकी यूं झिंझोड़ के बस पूछे,
किस खुशनसीब की जानिब इतने जाम लगाये हैं,
इक नज़र उसको देख दिल चीर रख दिया,
ये देख ले तू किस को हम दिल में छुपाये हैं!
जिन्हें सिराहने रख कर कुछ मीठे ख्वाब पाये हैं,
ख्वाबो में डूबा जन्नत में इतनी दूर चला गया,
के फ़रिश्ते मुझे अब घर मेरे छोड़ने आए हैं,
जब भी तेरे एहसास को महसूस मैं करूँ,
लगे कि कलियाँ ख़ुद को जैसे फूल बनाये हैं,
मयकदे में साकी यूं झिंझोड़ के बस पूछे,
किस खुशनसीब की जानिब इतने जाम लगाये हैं,
इक नज़र उसको देख दिल चीर रख दिया,
ये देख ले तू किस को हम दिल में छुपाये हैं!
बुधवार, 2 सितंबर 2009
एहसासों को न मरने दिया!
कुछ देर पहले जब मैं ख्यालों की दुनिया में गुम् था,
कुछ कांच के टुकडों को पैरों में चुभता महसूस किया,
नज़र उठा के ज्यूँ ही फर्श के सीने पे निगाह गड़ाई
तेरी यादों को झट समेट हथेली में अपनी महफूज किया,
खून के कतरे जब उसी हथेली से ज़मीं रंगरेज़ करने लगे,
तेरी जुदाई के ग़म से बस बेचैन दिल को भरने दिया,
नींद टूटी तो अपने पे मिटटी के गुबार को गिरता पाया,
बदन का साथ छोड़ दिया पर एहसासों को न मरने दिया,
हर मुमकिन कोशिश की खुदा ने वो बिखरे टुकड़े छिनने की,
कहा क्या बिसात इनकी जब उसने ही ख़ुद से दूर किया,
कर दे इन्हे मेरे हवाले और जन्नत-ऐ-नसीब कुबूल कर,
देखा इलाही को मुस्कुरा और टुकडों संग दोज़ख मंज़ूर किया!
कुछ कांच के टुकडों को पैरों में चुभता महसूस किया,
नज़र उठा के ज्यूँ ही फर्श के सीने पे निगाह गड़ाई
तेरी यादों को झट समेट हथेली में अपनी महफूज किया,
खून के कतरे जब उसी हथेली से ज़मीं रंगरेज़ करने लगे,
तेरी जुदाई के ग़म से बस बेचैन दिल को भरने दिया,
नींद टूटी तो अपने पे मिटटी के गुबार को गिरता पाया,
बदन का साथ छोड़ दिया पर एहसासों को न मरने दिया,
हर मुमकिन कोशिश की खुदा ने वो बिखरे टुकड़े छिनने की,
कहा क्या बिसात इनकी जब उसने ही ख़ुद से दूर किया,
कर दे इन्हे मेरे हवाले और जन्नत-ऐ-नसीब कुबूल कर,
देखा इलाही को मुस्कुरा और टुकडों संग दोज़ख मंज़ूर किया!
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