अरसे से इक बात दिल में रक्खी है,
चाह कर भी असबाब(१) बयाँ नहीं होता,
तन्हाई में बस दिन रात बसर होते हैं,
दफ्न जज्बातों में खूं रवां नहीं होता,
रिन्दों(२) के दरमियाँ शाम गुज़रती है,
महफ़िल में रह के भी वक़्त जवाँ नहीं होता,
मयकश पूछते किस मुअम्मा(३) में गुम हूँ,
तेरे ख़्वाबों में डूब के भी हल नुमाँ(४) नहीं होता,
फरोमाया(५) ही इस दुनिया से चला जाऊंगा,
काश एहसास-ए-उन्सियत(६) न किया होता!
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(१) कारण (२) पियक्कड़ (३) पहेली (४) प्रतीत (५) बेकार या किसी काम का नहीं (६) लगाव
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