शनिवार, 26 जून 2010

मेरी पहली पंजाबी रचना!


कृपया तस्वीर पर क्लिक करें!
दोस्तों,

आज मैंने अपनी पहली पंजाबी रचना लिखी है! मेरे एक मित्र हैं हरप्रीत सिंह जो दुबई में रहते हैं उन्होंने मुझ से कहा एक दिन की आप क्यों पंजाबी में नहीं लिखते! तो मैंने सोचा की आज लिख कर देखूं कैसा परिणाम आता है!

आप लोगों में से कुछ पंजाबी शायद न पढ़ पाएं, इसीलिए अपनी रचना हिंदी में भी लिख रहा हूँ! अगर फिर भी किसी को समझना हो तो बे-हिचक मुझे ईमेल भेज दें!

पंजाबी फोंट स्वीकार कर रहा था मेरा ब्लॉगर टेक्स्ट बॉक्स सो पिक्चर लगा रहा हूँ उन दोस्तों के लिए जो पंजाबी पढना जानते हैं!



"पलकां नु विछाया सजणा"


अज कल्लेयाँ बैठे हंजुआं नु पुछेया मैं,
कानू इन्ना लम्मा विछोडा पाया सजणा,
जदों रो रो के टुट बैठी हार के मैं,
तेरी तस्वीर नु घुट छाती लाया सजणा,
अक्खां बंद कर सोचन लग्गी रब बारे,
तेरा चेरा अक्खां अग्गे आया सजणा,
तेरे सजदे गल्लां कर के कुज देर,
बलदी होई अग्ग नु बुझाया सजणा,
तेरे बाजों जी हुन्न लग्गदा नि मेरा,
रावां तक्क तक्क जी भर आया सजणा,
हुन्न देर न कर आ बना ले अप्पना,
तेरे लई पलकां नु मैं विछाया सजणा!

मंगलवार, 22 जून 2010

सावन के झूलों की तरह!

जब तुम दूर गए तो पतझड़ था,
बस तेज़ हवा और अंधड़ था,
अब लौट बसंत फिर आया है,
तुम भी आओ फूलों की तरह,
डालों पे जो हैं सूने पड़े,
तेरी बाहों को छूने खड़े,
आ के बाहों में तुम ले लो,
उन सावन के झूलों की तरह,
इंतज़ार और अब होता नहीं,
रातों में घंटो सोता नहीं,
पल पल जुदाई का अब तो,
चुभने सा लगा शूलों की तरह,
अब देर न कर खो जाऊंगा,
आगोश-ए-क़ज़ा(१) सो जाऊंगा,
आँचल में समो ले तू मुझको,
उड़ ना जाऊं राह की धूलों की तरह!
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(१) मौत की बाहों में
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शुक्रवार, 11 जून 2010

कुछ अधूरे ख्वाब!

गुज़रते हुए वक़्त के साथ साथ,
तन्हाइयां भी मेरी बढ़ने लगी हैं,
चाँद के सीधे दीदार से भी,
पलकें मेरी अब सिकुड़ने लगी हैं,
किताब में दफ्न तेरी दी हुई कली,
जाने किन पन्नो को पढने लगी है,
सुलगती हुई सी वो तासीर के संग,
हर पत्ती भी उसकी अब सड़ने लगी है,
कोशिश तो की लेकिन थक हार बैठा,
मेरी हिम्मत ही अब मुझसे लड़ने लगी है,
कुछ देखे थे ख्वाब जो रह गए अधूरे,
कुछ तीखी सी कोफ्त है बढने लगी है,
या मिला दे उसे या बुला ले तू मुझको,
बस साँसों की माला बिखरने लगी है,
बस साँसों की माला बिखरने लगी है!