शुक्रवार, 11 जून 2010

कुछ अधूरे ख्वाब!

गुज़रते हुए वक़्त के साथ साथ,
तन्हाइयां भी मेरी बढ़ने लगी हैं,
चाँद के सीधे दीदार से भी,
पलकें मेरी अब सिकुड़ने लगी हैं,
किताब में दफ्न तेरी दी हुई कली,
जाने किन पन्नो को पढने लगी है,
सुलगती हुई सी वो तासीर के संग,
हर पत्ती भी उसकी अब सड़ने लगी है,
कोशिश तो की लेकिन थक हार बैठा,
मेरी हिम्मत ही अब मुझसे लड़ने लगी है,
कुछ देखे थे ख्वाब जो रह गए अधूरे,
कुछ तीखी सी कोफ्त है बढने लगी है,
या मिला दे उसे या बुला ले तू मुझको,
बस साँसों की माला बिखरने लगी है,
बस साँसों की माला बिखरने लगी है!

18 टिप्‍पणियां:

  1. या मिला दे उसे या बुला ले तू मुझको,
    बस साँसों की माला बिखरने लगी है,
    बस साँसों की माला बिखरने लगी है!

    वाह..वाह.. सुरेन्द्र जी!
    आपने बहुत बढ़िया रचना लिखी है!
    --

    लेखन मे नियमित रहिए!

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  2. या मिला दे उसे या बुला ले तू मुझको,
    बस साँसों की माला बिखरने लगी है,
    बस साँसों की माला बिखरने लगी है,

    बहुत ही बहुत.बढ़िया!

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  3. Lafz toh nahi baney inki shaan mein kuch kehne ke liye :)
    Par fir bhi kuch kehna chaahungi main...

    Aap ko taareef ki nahi hum jaise "well-wishers" ki zarurat hai :)
    Hum dua dete rahenge aur aap likhte rahenge!

    Bahut hi badiya likha hai aapne...

    Regards,
    Dimple

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  4. भावप्रवण प्रवाहमयी मनमोहक,बहुत ही सुन्दर रचना...

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  5. KUCHH NAYA NAHIN HAI......!!!!!
    ARRRE, MATLAB HAMESHA KI TARAH UMDA ABHIVYAKTI!
    AUR PUNARAAGMAN PAR AAPKA SWAAGAT HAI.....
    CHATAK RANG BHI PASAND AAYA!!!

    JANIYE....
    KYUN HOTA BAADAL BANJAARA.....?

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  6. किताब में दफ्न तेरी दी हुई कली,
    जाने किन पन्नो को पढने लगी है,
    सुलगती हुई सी वो तासीर के संग,
    हर पत्ती भी उसकी अब सड़ने लगी है,

    kya baat kahi hai sach bhaut acha laga pad kar ye bhav

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  7. चाँद के सीधे दीदार से भी,
    पलकें मेरी अब सिकुड़ने लगी हैं,
    किताब में दफ्न तेरी दी हुई कली,
    जाने किन पन्नो को पढने लगी है,
    सुलगती हुई सी वो तासीर के संग,
    हर पत्ती भी उसकी अब सड़ने लगी है,

    Wow...behad khoobsoorat.....Virah ko to aapne chitr de diya ....Likhte rahiye

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  8. कोशिश तो की लेकिन थक हार बैठा,
    मेरी हिम्मत ही अब मुझसे लड़ने लगी है,

    Every line is simply awesome...

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  9. पूरी रचना पसंद आय। शुभकामनायें

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  10. kya baat hai ji....ghalib ka sher yaad aa gaya:
    "Hazaaron khwahishen aisi ke har khwahish pe dam nikle
    Bohat niklay mere armaan, lekin phir bhi kam nikle"
    Your poem was brilliant, loved every word of it.

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  11. या मिला दे उसे या बुला ले तू मुझको,
    बस साँसों की माला बिखरने लगी है,
    बस साँसों की माला बिखरने लगी है!
    " बेहद भावुक शब्दों का सफ़र जैसे अपने अंजाम तक आ पहुंचा हो......"
    regards

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  12. "गुज़रते हुए वक़्त के साथ साथ,
    तन्हाइयां भी मेरी बढ़ने लगी हैं,"
    sahi kaha aapne

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  13. बहुत बढ़िया...
    भावुक शब्द....
    सुन्दर रचना...
    शुभकामनायें !

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  14. जिन्दा लोगों की तलाश! मर्जी आपकी, आग्रह हमारा!!

    काले अंग्रेजों के विरुद्ध जारी संघर्ष को आगे बढाने के लिये, यह टिप्पणी प्रदर्शित होती रहे, आपका इतना सहयोग मिल सके तो भी कम नहीं होगा।
    ============

    उक्त शीर्षक पढकर अटपटा जरूर लग रहा होगा, लेकिन सच में इस देश को कुछ जिन्दा लोगों की तलाश है। सागर की तलाश में हम सिर्फ सिर्फ बूंद मात्र हैं, लेकिन सागर बूंद को नकार नहीं सकता। बूंद के बिना सागर को कोई फर्क नहीं पडता हो, लेकिन बूंद का सागर के बिना कोई अस्तित्व नहीं है।

    आग्रह है कि बूंद से सागर में मिलन की दुरूह राह में आप सहित प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति का सहयोग जरूरी है। यदि यह टिप्पणी प्रदर्शित होगी तो निश्चय ही विचार की यात्रा में आप भी सारथी बन जायेंगे।

    हम ऐसे कुछ जिन्दा लोगों की तलाश में हैं, जिनके दिल में भगत सिंह जैसा जज्बा तो हो, लेकिन इस जज्बे की आग से अपने आपको जलने से बचाने की समझ भी हो, क्योंकि जोश में भगत सिंह ने यही नासमझी की थी। जिसका दुःख आने वाली पीढियों को सदैव सताता रहेगा। गौरे अंग्रेजों के खिलाफ भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, असफाकउल्लाह खाँ, चन्द्र शेखर आजाद जैसे असंख्य आजादी के दीवानों की भांति अलख जगाने वाले समर्पित और जिन्दादिल लोगों की आज के काले अंग्रेजों के आतंक के खिलाफ बुद्धिमतापूर्ण तरीके से लडने हेतु तलाश है।

    इस देश में कानून का संरक्षण प्राप्त गुण्डों का राज कायम हो चुका है। सरकार द्वारा देश का विकास एवं उत्थान करने व जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा खडा करने के लिये, हमसे हजारों तरीकों से टेक्स वूसला जाता है, लेकिन राजनेताओं के साथ-साथ अफसरशाही ने इस देश को खोखला और लोकतन्त्र को पंगु बना दिया गया है।

    अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, हकीकत में जनता के स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को डकारना और जनता पर अत्याचार करना इन्होंने कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं।

    अतः हमें समझना होगा कि आज देश में भूख, चोरी, डकैती, मिलावट, जासूसी, नक्सलवाद, कालाबाजारी, मंहगाई आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका सबसे बडा कारण है, भ्रष्ट एवं बेलगाम अफसरशाही द्वारा सत्ता का मनमाना दुरुपयोग करके भी कानून के शिकंजे बच निकलना।

    शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदर्शों को सामने रखकर 1993 में स्थापित-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)-के 17 राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से दूसरा सवाल-

    सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवकों) को यों हीं कब तक सहते रहेंगे?

    जो भी व्यक्ति स्वेच्छा से इस जनान्दोलन से जुडना चाहें, उसका स्वागत है और निःशुल्क सदस्यता फार्म प्राप्ति हेतु लिखें :-
    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा, राष्ट्रीय अध्यक्ष
    भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
    राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय
    7, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
    फोन : 0141-2222225 (सायं : 7 से 8) मो. 098285-02666
    E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in

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  15. किताब में दफ्न तेरी दी हुई कली,
    जाने किन पन्नो को पढने लगी है,
    सुलगती हुई सी वो तासीर के संग,
    हर पत्ती भी उसकी अब सड़ने लगी है....

    आज अख्तर खान जी के ब्लॉग पे आपकी तस्वीर देखी ....
    अब ब्लॉग में भी लगा लीजिये .....

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