मंगलवार, 8 मार्च 2011

औरत हूँ मैं....

प्रिय मित्रो,
सादर प्रणाम, पहले तो आज नारी दिवस के मौके पे मेरे सभी महिला ब्लॉगर सहभागी मित्रों को विशेष सत्कार!
काफी दिन हो गए थे, व्यस्तता के कारण कुछ लिखने का वक़्त ही नहीं मिल पा रहा था, आज ज़रा फ्री हुआ तो सोचा की मौका भी अच है, दिन भी अच्छा है तो क्यों न नारी के अस्तित्व पे कुछ लिखने की गुस्ताखी कर लूं, सो लिख दिए दिल के भाव!
आशा करता हूँ आप सभी अपने आशीर्वाद से अभिभूत करेंगे!

शीर्षक है: "औरत हूँ मैं...."


औरत हूँ मैं....

पैदा हुई तो किसी के यहाँ दिवाली,
और किसी के यहाँ रात काली,
कहीं सवालों के जवाब बनी,
और कभी खुद ही बन गयी सवाली,

औरत हूँ मैं....


कभी दो बहनों के होते भी मिला प्यार,
कभी अकेली थी भाइयों में तो भी तिरस्कार,
कभी मिल गया सब कुछ बिन मांगे ही,
कभी खुद पे भी न जता पायी अधिकार,
 
औरत हूँ मैं....


कभी पढ़ लिख के ऊंची मंजिल पायी,
कभी चूल्हों चौकों से न निकल पायी,
जहां कष्ट हज़ारों झेले थे कभी,
ज़रा सुख मिला तो भी न निगल पायी,
 
औरत हूँ मैं....


कभी माँ बाप को दोस्त समझ सब कह गयी,
कभी डरती सहमती सी चुप रह गयी,
कभी हसरतें उम्मीदें पूरी हुईं,
कभी बिन बोले ही सब कुछ सह गयी,
 
औरत हूँ मैं....


कभी कल्पना बन चाँद पे जा बैठी,
कभी बर्तन धोते तश्तरी को चाँद बना बैठी,
कभी सपनो ने अरमानो के पंख लगाए,
कभी दबे हुए अरमान भी भुला बैठी,
 
औरत हूँ मैं....


बेटी, बहन और माँ भी मैं हूँ,
तपती धूप में ठंडी छाँ भी मैं हूँ,
अत्याचारों की आग में जलती जो है,
जहाँ रहते हो वो भारत माँ भी मैं हूँ,
 
औरत हूँ मैं....


हर रूप में ममता की मूरत हूँ मैं,
जग जननी सृष्टि की ज़रुरत हूँ मैं,
दो क़दम आओ तो चार क़दम मैं आऊँ,
रब के बाद रब की ही सूरत हूँ मैं,
 
औरत हूँ मैं....औरत हूँ मैं....औरत हूँ मैं....!

42 टिप्‍पणियां:

  1. "पैदा हुई तो किसी के यहाँ दिवाली,
    और किसी के यहाँ रात काली,
    कहीं सवालों के जवाब बनी,
    और कभी खुद ही बन गयी सवाली,"

    बहुत ही बढ़िया !

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  2. सुरिंदर जी
    औरत की ज़िन्दगी की दास्ताँ को बहुत अच्छे से पिरोया है आपने अपनी इस रचना में...मेरी बधाई स्वीकारें

    नीरज

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  3. बहुत सशक्त रचना पेश की है आपने!
    महिला दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
    --
    केशर-क्यारी को सदा, स्नेह सुधा से सींच।
    पुरुष न होता उच्च है, नारि न होती नीच।।
    नारि न होती नीच, पुरुष की खान यही है।
    है विडम्बना फिर भी इसका मान नहीं है।।
    कह ‘मयंक’ असहाय, नारि अबला-दुखियारी।
    बिना स्नेह के सूख रही यह केशर-क्यारी।।

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  4. कभी कल्पना बन चाँद पे जा बैठी,
    कभी बर्तन धोते तश्तरी को चाँद बना बैठी,
    कभी सपनो ने अरमानो के पंख लगाए,
    कभी दबे हुए अरमान भी भुला बैठी,

    बहुत ही बढ़िया, मेरी बधाई स्वीकारें,

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  5. सुरेन्द्र जी,
    बहुत ही सुन्दर कविता ! सशक्त रचना !

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  6. Wonderful work done SC...
    Proud of you!
    And thanks for such a beautiful composition...
    Really, touchy!!

    Regards,
    Dimple

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  7. very nicely presented. very deep thought beutifully clubbed together... As we say on FB, superlike :)

    Rati

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  8. कभी कल्पना बन चाँद पे जा बैठी,
    कभी बर्तन धोते तश्तरी को चाँद बना बैठी,
    कभी सपनो ने अरमानो के पंख लगाए,
    कभी दबे हुए अरमान भी भुला बैठी,
    क्या बात है सुरेन्द्र जी! बहुत सुन्दर कविता है. बधाई, इतनी सुन्दर रचना के लिये.

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  9. हर रूप में ममता की मूरत हूँ मैं,
    जग जननी सृष्टि की ज़रुरत हूँ मैं,
    दो क़दम आओ तो चार क़दम मैं आऊँ,
    रब के बाद रब की ही सूरत हूँ मैं,
    महिला दिवस पर बहुत अच्छा तोहफा दिया। लाजवाब रचना। बधाई शुभकामनायें।

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  10. हर रूप में ममता की मूरत हूँ मैं,
    जग जननी सृष्टि की ज़रुरत हूँ मैं,
    दो क़दम आओ तो चार क़दम मैं आऊँ,
    रब के बाद रब की ही सूरत हूँ मैं,

    औरत हूँ मैं....औरत हूँ मैं....औरत हूँ मैं....!

    बहुत ही सुन्दर कविता. मेरी बधाई स्वीकारें.

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  11. Brother,
    Khad ke Salute!
    You have beautifully woven the pain, aspirations of a woman.
    I make a public admission, I would want to father a girl child....
    Ashish

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  12. बहुत ही सुन्दर रचना, महिला दिवस पर इससे बेहतर उपहार क्या हो सकता है|

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  13. चुस्ती , फुर्ती सम्पूर्ण है
    नारी ये परिपूर्ण ही
    बेटी बहन, प्रियतमा
    स्त्रीतमा

    सही और सच्ची तस्वीर
    अच्छा लिखा है आपने

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  14. महिला -दिवस मनाने का क्या ओचित्य है समझ में नही आता ! फिर भी ख़ुशी का एक दिन भी बहुत अच्छा है प्राजी ! अनमोल -भेट दी है आज आपने हम महिलाओं को धन्यवाद---|

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  15. औरत के विभिन्न रूपों का खूबसूरत चित्रण .

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  16. Yet another extraordinary work by an extraordinary poet..."Aurat" ke astitva ka itna khoobsurat varnan isse pehle na toh kahin suna aur na hi pada hai...your creation made me feel proud of being a woman...keep up the excellent work...!!!

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  17. कभी पढ़ लिख के ऊंची मंजिल पायी,
    कभी चूल्हों चौकों से न निकल पायी,
    जहां कष्ट हज़ारों झेले थे कभी,
    ज़रा सुख मिला तो भी न निगल पायी ...

    बहुत खूब ... नारी होने के हर रूप को जिया है आपने इन पंक्तियों में ... सार्थक लिखा है ....

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  18. सराहनीय.....

    बहुत बहुत सुन्दर ढंग से आपने स्त्री की अवस्था को रेखांकित किया है....

    बहुत ही सुन्दर रचना....वाह...वाह...वाह...

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  19. बेटी, बहन और माँ भी मैं हूँ,
    तपती धूप में ठंडी छाँ भी मैं हूँ,
    अत्याचारों की आग में जलती जो है,
    जहाँ रहते हो वो भारत माँ भी मैं हूँ,

    औरत हूँ मैं....


    हर रूप में ममता की मूरत हूँ मैं,
    जग जननी सृष्टि की ज़रुरत हूँ मैं,
    दो क़दम आओ तो चार क़दम मैं आऊँ,
    रब के बाद रब की ही सूरत हूँ मैं,
    Aafreen! Kya khoob likha hai!

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  20. बहुत ही सुन्दर लिखा है आपने,सुरेन्द्र जी.
    सलाम

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  21. मैं ज़रूरी काम में व्यस्त थी इसलिए पिछले कुछ महीनों से ब्लॉग पर नियमित रूप से नहीं आ सकी!
    बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने! बढ़िया लगा! उम्दा प्रस्तुती!

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  22. आपकी कविता काबिले तारीफ़ है. कोई तुलना नहीं इन पंक्तियों की. आपकी सोच से आपकी अभिव्यक्ति से रू ब रू हो जाते हैं . औरत के हर रूप को कितने ख़ूबसूरत से आपने अपनी रचना में ढाला है.

    शब्द भी कम होंगे आपकी रचना की तारीफ़ में. आपकी सुन्दर रचना के लिए शुभकामनायें.

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  23. होली की अपार शुभ कामनाएं...बहुत ही सुन्दर ब्लॉग है आपका....मनभावन रंगों से सजा...

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  24. apane bhut khub likha aap badhai ke patr hai
    holi ki shubh kamnao ke saath bahut hi payari rachna

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  25. bahut khub likha
    holi ki subhkamnaye
    mere blog par aane ke liye dhanywad

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  26. कभी पढ़ लिख के ऊंची मंजिल पायी,
    कभी चूल्हों चौकों से न निकल पायी,
    जहां कष्ट हज़ारों झेले थे कभी,
    ज़रा सुख मिला तो भी न निगल पायी,

    बहुत संवेदनाशील और प्रभावी अभिव्यक्ति ........

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  27. आपका ब्लॉग पसंद आया....इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
    http://vangaydinesh.blogspot.com/2011/03/blog-post_12.html

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  28. आपको एवं आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें!

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  29. होली की हार्दिक शुभकामनायें !

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  30. होली पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएँ|

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  31. हर रूप में ममता की मूरत हूँ मैं,
    जग जननी सृष्टि की ज़रुरत हूँ मैं,
    दो क़दम आओ तो चार क़दम मैं आऊँ,
    रब के बाद रब की ही सूरत बहुत खूब प्यारी गजल इस के लिए शुभकामनाये
    मेरे ब्लॉग पे आकर मेरा होसला बढ़ने के लिए आप का शुक्रिया

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  32. nice कृपया comments देकर और follow करके सभी का होसला बदाए..

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  33. कामाल कर दिया सुरेन्द्र भाई
    बधाई

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  34. nice कृपया comments देकर और follow करके सभी का होसला बदाए..
    nice words plz follow

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  35. औऱत होकर भी औरत का इतना सटीक चित्रण तो स्वयं मैं भी न कर पाउंगी...भावुक कर दिया सुरेन्द्र जी।

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