गुरुवार, 8 सितंबर 2011

कुछ ग़ुम अनमोल लम्हे......

ना जाने किस धुन में था मैं उस दिन
आग-ए-गुमाँ रिश्तों को तपाया मैंने
बदकिस्मती में खाली हाथ बैठा था
एहसास का वो अज़ीज़ पल गवाया मैंने
वो जिन्हें मोतियों की माला बना सजाना था
उनकी आँखों से उन अश्कों को बहाया मैंने
वो नाराज़ हो के भी तलाशते रहे मुझको
बे-गैरती में कोई रिश्ता न निभाया मैंने
रुखसती का हर लम्हा उन्हें सालता सा था
उन्हें और जलाने खुद को छुपाया मैंने
कुछ वक़त बाद एहसास हुआ दीदा-दिलेरी(१) का
दस्त-बसता(२) फ़रियाद दिल को मनाया मैंने
इक डर सा दिल में था की वो माफ़ न करे
पर हिम्मत कर उसकी तरफ क़दम बढ़ाया मैंने
अपनी तरफ आता देख वो उठ के जाने लगे ऐसे
अपनी आँखों में खुद को गिरा नुमाया मैंने
पलकें झुकी और खुद में जैसे ही सिमटा
उन्हें अपने ही करीब खडा पाया मैंने
अब फर्क ये था अश्क थे दोनों की आँखों में
अश्कों के दरिया में खुद को डूबा पाया मैंने
इक बार फिर साबित हुआ वो कितना चाहते हैं
खुद को उन सा बनाने का वादा खुद से बनाया मैंने
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(१) शर्मनाक हरकत (२) हाथ जोड़ कर
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36 टिप्‍पणियां:

  1. इक बार फिर साबित हुआ वो कितना चाहते हैं
    खुद को उन सा बनाने का वादा खुद से बनाया मैंने
    --
    बहुत उम्दा और लाजवाब!

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  2. आपको आपके इस सुंदर रचना के लिए हार्दिक शुभकामनाएं | आपकी हर एक पंक्ति को बार बार दोहराने का मन करता है | ये रचना किन्ही दो लोगों के रिश्ते और आपसी समझ से रू बा रू करा रही है|

    "अब फर्क ये था अश्क थे दोनों की आँखों में
    अश्कों के दरिया में खुद को डूबा पाया मैंने"

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  3. रुखसती का हर लम्हा उन्हें सालता सा था
    उन्हें और जलाने खुद को छुपाया मैंने

    ऐसा नहीं करना चाहिए...अपनों को दुःख पहुँचाना बहुत गलत काम होता है...एक बार कमान से तीर निकले बाद वो लौट कर नहीं आता...

    नीरज

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  4. बहुत सुन्दर भावो को पिरोया है।

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  5. इक बार फिर साबित हुआ वो कितना चाहते हैं
    खुद को उन सा बनाने का वादा खुद से बनाया मैंने

    हमेशा की तरह बेहतरीन शब्दों और भावों को पिरो के बनी खूबसूरत रचना.

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  6. वो जिन्हें मोतियों की माला बना सजाना था
    उनकी आँखों से उन अश्कों को बहाया मैंने
    yakin nhn hota sir, aap aisa bhi likh sakte hain!!!
    really a touching composition this time!!!

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  7. वो जिन्हें मोतियों की माला बना सजाना था
    उनकी आँखों से उन अश्कों को बहाया मैंने
    वो नाराज़ हो के भी तलाशते रहे मुझको
    बे-गैरती में कोई रिश्ता न निभाया मैंने

    Lajawaab... kya kahe aur hum... har dil yeh dukhda hai ki kash wo din laut key aajaye...

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  8. प्रियवर सुरेन्द्र"मुल्हिद"जी
    जब भी आपकी क़लम चली … ख़ूब चली !
    :)

    इक बार फिर साबित हुआ वो कितना चाहते हैं
    खुद को उन सा बनाने का वादा खुद से बनाया मैंने


    शुक्र है … सही दिशा की ओर लौट आए

    बधाई !

    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  9. Bahut dino baad didar-e-yaar kayara tumne
    the yahin kahi aas-paas, kyun intejar karaya tumne...fir wahi jhande gad diye aapne...bahut khub...sukhant ghazal...

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  10. पलकें झुकी और खुद में जैसे ही सिमटा
    उन्हें अपने ही करीब खडा पाया मैंने
    Nihayat sundar rachana!

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  11. बेहतरीन शब्दों को पिरो के बनी खूबसूरत रचना...

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  12. क्या बात है बहुत सुन्दर भावप्रद रचना। शुभकामनाएं

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  13. bahut khub.........

    ek sujhaav....apni lekhni ko...kuch is tarhe likhe ki wo sher lage.........

    इतने हिस्सों में बँट गई हूँ मैं
    कि मेरे हिस्से में अब कुछ बचा ही नहीं ||

    anu

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  14. क्या सुरेंदर भाई? सब ठीकम-ठाकम?
    आशीष
    --
    मैंगो शेक!!!

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  15. सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति.

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  16. क्या बात है ... उन्हें जलाने का अंदाज़ कमाल लगा ...

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  17. इक बार फिर साबित हुआ की वो कितना चाहते हैं
    खुद को उन सा बनाने का वादा खुद से किया मैंने.........बहुत खूबसूरत ताना-बाना आपस में उलझे भी और आपस में ही बात सुलझ गई |
    सुन्दर रचना |

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  18. बहुत सुन्दर हृदयस्पर्शी भावाभिव्यक्ति....

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  19. एहसास का वो अज़ीज़ पल गवाया मैंने
    वो जिन्हें मोतियों की माला बना सजाना था
    उनकी आँखों से उन अश्कों को बहाया मैंने

    मेरी घरेलु भाषा भोजपुरी है.. इच्छा हुई की भोजपुरी में प्रतिक्रिया दूँ...

    बहुत बढ़िया लिखले बनी.. आभार.. राउर प्रतिक्रिया के हमरो बा इंतिजार.. एक बेर जरूर आइब.. राउर स्वागत बा...

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  20. बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने! हर एक शब्द लाजवाब है! शानदार प्रस्तुती!
    आपको एवं आपके परिवार को नवरात्रि पर्व की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !

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  21. अपनी तरफ आता देख वो उठ के जाने लगे ऐसे
    अपनी आँखों में खुद को गिरा नुमाया मैंने !

    बहुत बढ़िया लिखले बनी.. आभार..

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  22. अब फर्क ये था अश्क थे दोनों की आँखों में
    अश्कों के दरिया में खुद को डूबा पाया मैंने

    बहुत खूब ! आग में तपकर ही तो सोना सच्चा होता है !

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  23. बहुत प्रभावी भावाभिव्यक्ति..

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  24. अब फर्क ये था अश्क थे दोनों की आँखों में
    अश्कों के दरिया में खुद को डूबा पाया मैंने
    इक बार फिर साबित हुआ वो कितना चाहते हैं
    खुद को उन सा बनाने का वादा खुद से बनाया मैंने


    लाजवाब नज्म....बहुत सुन्दर लिखा है आपने ! गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ ज़बरदस्त प्रस्तुति!

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  25. प्रेम पर बड़ी सुन्दर और मार्मिक रचना. दुर्गा -पूजा की शुभकामनायें.
    कभी मेरा ब्लॉग भी विसित करें :
    www.belovedlife-santosh.blogspot.com

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  26. आपको एवं आपके परिवार को दशहरे की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !

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  27. मालको बड़ी मुश्किल नाल कोई पंजाबी मिलिया है ब्लोगर नगर विच
    बड़ी वधिया रचनावां ने

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  28. अब फर्क ये था अश्क थे दोनों की आँखों में
    अश्कों के दरिया में खुद को डूबा पाया मैंने
    wah bahut khoob sir..

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  29. itni imandaari kahan koi dikhate hain..kam hi hote hain jo rulane ke baad manate hai...
    beautiful creation....:)

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