बुधवार, 25 नवंबर 2009

तेरा ही करम.....

ख़्वाबों के झुरमुट और तारों की छाँव में,

गेसू-दराज़(१) में गिरता चला गया मैं,

पहली नज़र में मानूस(२) लगी मुझे,

सबाहत(३) में घिरता चला गया मैं,

तेरी नज़र का कुछ ऐसा वार हुआ,

पत्तों माफिक बिखरता चला गया मैं,

नागहाँ(४) तेरी गली का रुख कर लिया,

बदहवास हुआ फिरता चला गया मैं,

पेश्दास्ती(५) में था के तू थाम लेगी,

दिल हथेली पे लिए चीरता चला गया मैं।

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(१) घने बाल (२) जाना पहचाना (३) खूबसूरती (४) अचानक (५) उम्मीद

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8 टिप्‍पणियां:

  1. पेश्दास्ती(५) में था के तू थाम लेगी,

    दिल हथेली पे लिए चीरता चला गया मैं।

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    बाह खूबसूरत अल्फाज से सजी इस गजल को

    बार-बार गुनगुनाने को मन करता है।

    बहुत बढ़िया!

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  2. kabhi raasta na tha to kabhi manzil na mili
    bas isi azmanjas mein phasta chala gaya main,
    mil jaati jo manzil to muskura lete
    bas isi aas pe thokar khata chala gaya main...

    your poem was brilliant...every time I read it I admired it all the more.

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  3. पहली नज़र में मानूस लगी मुझे,
    सबाहत में घिरता चला गया मैं,
    bahut ache se shabdon ko piroya hai apne....
    really a good composition!!!

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  4. बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! हर एक पंक्तियाँ लाजवाब है! इस उम्दा रचना के लिए बधाई!

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  5. itni khoobsuarti tune sajaya shabdo ko..
    jab padaa, to padta chala gaya main..

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  6. पहली नज़र में मानूस लगी मुझे,
    सबाहत में घिरता चला गया मैं,
    ारे बेटा वाह कमाल कर दिया इतनी खूबसूरत रचना के लिये और उसबाहत मे घिरने के लिये बधाई लाजाव्ब रचना है

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