बुधवार, 27 जनवरी 2010
साँसों की डोरी-(मेरी पचासवीं रचना)
कृपया तस्वीर पर क्लिक करें!
प्रिय दोस्तों,
आज मैं अपनी पचासवीं रचना के साथ आप का शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ, आपके सहयोग और प्यार ने मुझे और लिखने की प्रेरणा दी!
लगभग आठ महीने पहले मैंने ब्लॉग जगत में क़दम रखा और आप लोगों का इतना स्नेह और प्रोत्साहन मिला की वापस कभी जा ही नहीं पाया!
आशा करता हूँ मैं आप सभी की उम्मीदों पे आगे भी खरा उतरूंगा!
एक बार फिर आप सभी दोस्तों का हार्दिक धन्यवाद!
रविवार, 24 जनवरी 2010
शुक्रवार, 22 जनवरी 2010
शनिवार, 16 जनवरी 2010
रविवार, 10 जनवरी 2010
धड़कन की जुबाँ होती है!
कभी अश्कों तो कभी ख़ामोशी में बयाँ होती है,
हर पल एहसासों की तड़प दिल में जवाँ होती है,
तेरे सजदे में रह के ए'तेराफ(१) करना है मुझे,
जो कशिश तुझ में है इबादत में कहाँ होती है,
बेचैनी की लकीरें जो जबीन(२) पे उभरती हैं,
खींच ले जाती हैं मुझे मयकशी जहां होती है,
उस तरफ गुरूब्ता(३) पाता हूँ मैं खुद को,
दरिया की खामोशी सब से ज्यादा जहां होती है,
तू भी एहतेसाब(४) करने लगी है मेरी चाहत को,
माने या न माने तू हर धड़कन की जुबाँ होती है!
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(१) इज़हार (कन्फेस) (२) माथा (३) डूबता (४) परीक्षण
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हर पल एहसासों की तड़प दिल में जवाँ होती है,
तेरे सजदे में रह के ए'तेराफ(१) करना है मुझे,
जो कशिश तुझ में है इबादत में कहाँ होती है,
बेचैनी की लकीरें जो जबीन(२) पे उभरती हैं,
खींच ले जाती हैं मुझे मयकशी जहां होती है,
उस तरफ गुरूब्ता(३) पाता हूँ मैं खुद को,
दरिया की खामोशी सब से ज्यादा जहां होती है,
तू भी एहतेसाब(४) करने लगी है मेरी चाहत को,
माने या न माने तू हर धड़कन की जुबाँ होती है!
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(१) इज़हार (कन्फेस) (२) माथा (३) डूबता (४) परीक्षण
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मंगलवार, 5 जनवरी 2010
काश बस अरमान लिए न मरूं मैं!
कितने अरसे बाद चाँद हुआ नुमाया,
क्यों न तेरी आज तारीफ करूँ मैं,
तुझे देख गुलों का पुलिंदा शरमाया,
क्यों न तेरी आज तारीफ करूँ मैं,
तेरे हुस्न का चर्चा कुछ यूँ गहराया,
महफ़िल में भी जाते हुए डरूं मैं,
अपने अंदाज़ में हर कोई तुझे करे बयान,
कश्म-कश है कैसे बयान करूँ मैं,
इक तरफ ताज महल फिर सूरत है तेरी,
तस्वीर में कैसे रवां करूँ मैं,
दिल में ही रखूँ कह भी न पाऊँ,
काश बस अरमान लिए न मरूं मैं!
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