मंगलवार, 5 जनवरी 2010

काश बस अरमान लिए न मरूं मैं!

कितने अरसे बाद चाँद हुआ नुमाया,

क्यों न तेरी आज तारीफ करूँ मैं,

तुझे देख गुलों का पुलिंदा शरमाया,

क्यों न तेरी आज तारीफ करूँ मैं,

तेरे हुस्न का चर्चा कुछ यूँ गहराया,

महफ़िल में भी जाते हुए डरूं मैं,

अपने अंदाज़ में हर कोई तुझे करे बयान,

कश्म-कश है कैसे बयान करूँ मैं,

इक तरफ ताज महल फिर सूरत है तेरी,

तस्वीर में कैसे रवां करूँ मैं,

दिल में ही रखूँ कह भी न पाऊँ,

काश बस अरमान लिए न मरूं मैं!

10 टिप्‍पणियां:

  1. "कितने अरसे बाद चाँद हुआ नुमाया,
    क्यों न तेरी आज तारीफ करूँ मैं,"

    बुहत सुन्दर!
    उत्कर्षों के उच्च शिखर पर चढ़ते जाओ।
    पथ आलोकित है, आगे को बढ़ते जाओ।।

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  2. तेरे हुस्न का चर्चा कुछ यूँ गहराया,
    महफ़िल में भी जाते हुए डरूं मैं,

    kafi khubsurat kalpna hai...
    again a good composition...

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  3. वाह बहुत सुन्दर कविता है --- दिल मे ही रखूँ कह भी न पाऊँ बहुत अच्छा लगा मगर अब कह ही दो कहीं दिल की दिल मे ही न रह जाये बेटा। आशीर्वाद्

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  4. काश बस अरमान लिए न मरूं मैं!

    फिर तो पक्का कुछ दुआ करू मैं

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  5. दिल में ही रखूँ कह भी न पाऊँ,

    काश बस अरमान लिए न मरूं मैं!

    khoobsrat panktiyaan..
    ahsaas se labrez..

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  6. बहुत सुन्दर रचना
    बहुत -२ आभार एवम
    नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएं .............

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  7. "adhoori khahishon ke saath marna asaan nahin
    isiliye jo hai usi ko maang leta hoon,
    taan ki shikayat na ho khuda se
    apne hisse ki takdir badal leta hoon..."
    That was just an attempt to carry forward your beautiful line of thought in the poem.

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  8. आपको और आपके परिवार को नए साल की हार्दिक शुभकामनायें!
    बहुत बढ़िया रचना लिखा है आपने!

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