गुरुवार, 25 मार्च 2010

ख़्वाबों में लाने के लिए!

इक दरख्वास्त तुझ से की है,
नज़र-ए-जाम पिलाने के लिए,
कतरा-ए-आब(१) ही काफी है सादिक,
मुझे होश में लाने के लिए,
अबरू(२) ये तीखी कम नहीं,
हूरे-सल्तनत हिलाने के लिए,
इन्ही से घायल कर मुझको,
वक़्त नहीं तलवार चलाने के लिए,
देर हुई तो कहीं दम न तोड़ दूं,
हकीम मिलता नहीं ज़ख्म सिलाने के लिए,
जो कहीं नागहाँ(३) दूर चला भी जाऊं,
साँसों से छू लेना मुझे जिलाने के लिए,
हर कीमत देने काबिल हूँ मैं,
तुझे न कभी भुलाने के लिए,
चल अब आँखें मूँद लेता हूँ,
सोना तो पड़ेगा तुझे ख़्वाबों में लाने के लिए!
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(1) पानी का एक कतरा (२) भोहें (३) दुर्घटनावश **********************************************

बुधवार, 24 मार्च 2010

तेरी यादें!


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धन्यवाद!

बुधवार, 17 मार्च 2010

वही कहते हैं!

अब कोई और काम नहीं रह गया,
हर पल तेरे ख्यालों में रहते हैं,
खमदार(१) गेसुओं में खोये हुए,
दिल की उलझने सुलझाते रहते हैं,
ना जाने की इबरत(२) गजरे ने दी थी,
बोले जुल्फों में बादल घने रहते हैं,
मैंने भी फिर चुपके से पूछा ये उसको,
क्या घटायें और पानी संग नहीं रहते हैं,
सन्न सा हुआ मेरे इस नजीर(३) पे,
बोला ये जुमले कहाँ से बहते है,
मोहब्बत ने शायर बना डाला मुझको,
जो लरजता है दिल में वही कहते हैं!

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(१) घुंघराले (२) चेतावनी (३) उदाहरण
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शुक्रवार, 12 मार्च 2010

अधूरी ख्वाहिशें!


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धन्यवाद!

सोमवार, 8 मार्च 2010

नमन करता हूँ-महिला दिवस पर कुछ ख़ास!


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सधन्यवाद,

सुरेन्द्र!

गुरुवार, 4 मार्च 2010

दिल-ए-मासूम!


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