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एहतराम(१) में पलकें बिछाए खड़े हैं,
तू आये और इन सर्द आँखों को छू ले,
एजाज़(२) की आरज़ू में शायद इन सूखे,
दरख्तों पे पड़ जाएँ सावन के झूले,
तहम्मुल(३) की हदें मैं तोड़ न बैठूं,
इक पल के लिए भी जो तू दूर हो ले,
बिशारत-ए-आमद(४) जो आ जाए तेरी,
इल्तेजा ये करूँ हर सांस मेरी तू ले,
चल इस तरह तेरी आगोश में रह लूं,
न मैं तुझको भूलूँ न तू मुझको भूले,
खारदार(५) जो वक़्त कभी तुझपे आये,
इलाही ये दिल ही उसे रू-ब-रू ले !
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(१) सम्मान (२) चमत्कार (३) धैर्य (४) आने की खुशखबरी (५) मुसीबतों भरा
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