बुधवार, 29 जुलाई 2009
क्या कब्र में भी चैन की नींद सो सकूँगा!
क्या मैं कभी सुकून की नींद सो सकूँगा,
अपने ज़ख्मो को हँसी का जामा पहना के,
क्या तेरे कंधे पे सर रख के रो सकूँगा,
बे-सब्र यादें जो मुकम्मिली के मुगालते में हैं,
क्या उन्हें दफन रखने में कामयाब हो सकूँगा,
तेरे ग़म में बंजर हुई दिल के ज़मीन पे,
क्या हँसते हुए फूलों के बीज बो सकूँगा,
तेरे बदन की खुशबु से पैदा हुए जज्बातों को,
क्या अश्कों की बरसात से भिगो सकूँगा,
तेरी यादें जिसे जीते जी मरने न दें,
क्या कब्र में भी चैन की नींद सो सकूँगा!
मंगलवार, 28 जुलाई 2009
धुआं उठता है कहीं....
आंसुओं का सैलाब उठा....लगा के ज़ख्म पिघलने लगे,
अब तक जो दबाये रखे....दिल की गर्त गहराईयों में,
ख्वाब रूह तक जला गए....फफोलों की तरह निकलने लगे,
चाहत-ऐ-सुकून के जानिब....ख़ुद को सर्द पानी में धकेला,
बदनसीबी की इन्तेहाँ हुई....ज़ख्म मुझ ही को निगल्ने लगे,
खुदा ने भी रुख फेर लिया....मुझे मरते को न बचाने आया,
दोज़खी नुमाइंदे सर उठा....गोया ही मुझे लिए चलने लगे!
सोमवार, 27 जुलाई 2009
शिल्पकार!!
अब कहीं जा के दीदार ऐ यार होगा
फलक से क़दम तेरे ज़मी पे जब पड़ेंगे
दुल्हन की तरह इस धरती का श्रींगार होगा
इस्तकबाल में तेरे गली कूचा यूं सजेगा
चश्मदीदों के अरमां ये रूह-ऐ-रुखसार होगा
किसी अनजान राहगीर पे झलक न पड़ने देना
अपनी बदहवासी का वो ख़ुद जिम्मेदार होगा
तारीफ है उस खुदा की जिसने तुझे तराशा
सिर्फ़ हसीन मिट्टियों का वो शिल्पकार होगा
गुरुवार, 23 जुलाई 2009
क्या ये पैसा सब कुछ खरीद सकता है|
दिल का चैन पलकों में नैन और हर पल का सुकून
बच्चो की किलकारियां बिछडे दोस्तों की यारियां
बुजुर्गों का आशीर्वाद अपने पुरखों की याद
माँ की प्यार भरी गोद भाई बहनों का कुछ पाने का अनुरोध
शरारतों पर पिता की बे-इन्तेहाँ झिडकियां
रात को दोस्तों संग भागने के लिए खुल छोड़ी खिड़कियाँ
महबूबा के तोहफे के लिए इकट्ठे किए हुए पैसे
हफ्ते भर खाना खाए बिना जमा किए हो जैसे तैसे
वोह कुछ अच्छा करने पर दोस्तों की मिली तालियाँ
सुबह के चार बजे हॉस्टल में मैगी की भरी थालियाँ
क्या ये पैसा सब कुछ खरीद सकता
अब क्या कहूं दोस्तों हर पैगाम बिकता है
बच्चो से लेकर बड़ों तक हर इंसान बिकता है
शैतान की तो छोड़ दो भगवान् बिकता है
फ़र्ज़ धर्म हया और ईमान बिकता है
क्या ये पैसा सब कुछ खरीद सकता है
हाँ ये पैसा सब कुछ खरीद सकता है
बुधवार, 22 जुलाई 2009
ज़रा सोच के देखो!
पत्थर में भी खुदा के दीदार होंगे, ज़रा सोच के देखो
हर रश्क ज़िन्दगी के पार होंगे, ज़रा सोच के देखो
दुश्मनों के दरमियाँ भी यार होंगे, ज़रा सोच के देखो
तबाह हुए बाग़ भी गुलज़ार होंगे, ज़रा सोच के देखो
खुदा से भी नैन यह चार होंगे, ज़रा सोच के देखो
इक दो नही बारम्बार होंगे, ज़रा सोच के देखो
मुसीबतों के दोज़ख भी पार होंगे, ज़रा सोच के देखो
इलाही जन्नत के दीदार होंगे, ज़रा सोच के देखो
आँखों को मूंदने के दरकार होंगे, ज़रा सोच के देखो
तेरे महबूब ही तेरे एहेल्कार होंगे, ज़रा सोच के देखो
ज़रा सोच के देखो, ज़रा सोच के देखो
मंगलवार, 21 जुलाई 2009
तेरा इंतज़ार !
क्या आज भी दिन मेरे लिए वैसे ही हैं
ये खिलखिलाते हुए फूल तेरे जैसे ही हैं
तू शायद दूर जा के भूल गई हो मुझको
हम तेरे इंतज़ार में काफिर वैसे ही हैं
तेरी आहटों का तसव्वुर ख्याल-ऐ-दिल में हैं
तेरे एहसासों की एहमियत पहले जैसे ही हैं
हर शै में तुझे पल पल मैं तलाशता हूँ
तुझे ढूँढ लेने की जुनूनियत वैसे ही हैं
अब और न तड़पा पहलु में आ भी जा दिलबर
मरते दम तक तेरी चाहत पहले जैसे ही है.
शुक्रवार, 17 जुलाई 2009
इक बेटी के दिल से.......
तेरा और बापू का अंगना खुशियों से भर पाऊँगी....
लंबे वक्त से इंतज़ार में हूँ कब तेरे आगोश में समाऊँगी.....
तेरे कोमल होटों को मैं अपने नन्हे हाथो से छू पाउंगी.....
उम्मीद करती हूँ माँ तुझसे अथाह प्यार मैं पाऊँगी.....
तेरे इक स्पर्श से ही रोते रोते चुप जाउंगी......
कभी अकेली महसूस करू तुझ से हर बात बताऊंगी....
रब से भले छुपा लूँ मैं तुझ से न कभी भी छुपाऊँगी.....
हर मुमकिन कोशिश करुँगी मैं तुझको न कभी मैं रुलाऊंगी.....
अपने को अतीत में देखेगी जब हाथों में मेहँदी लगाउंगी....
जिस पल डोली में बैठूंगी नैनो को रोक न पाऊँगी......
बस कस के लग कर गले तेरे मैं रोती रोती जाउंगी.......
है तूने मुझको जन्म दिया एहसान भुला न पाऊँगी.....
एहसान भुला न पाऊँगी.....एहसान भुला न पाऊँगी.....
बुधवार, 15 जुलाई 2009
अभी न उठाओ मुझको....
एहसासों को कुछ और नम होने दो ज़रा अभी न उठाओ मुझ को....
मुझ ज़र्रे को बालों का फूल होने दो ज़रा अभी न उठाओ मुझ को....
खुदा समझ के सजदे में खोने दो ज़रा अभी न उठाओ मुझ को....
अपनी बाहों के दरमियान समोने दो ज़रा अभी न उठाओ मुझ को....
ख़ुद को झील-नुमा आँखों में डुबोने दो ज़रा अभी न उठाओ मुझ को....
अपने ख़्वाबों में आ के खोने दो ज़रा अभी न उठाओ मुझ को....
अपने आगोश में भर के जीने दो ज़रा अभी न उठाओ मुझ को....
रुखसार की मय मुझे पीने दो ज़रा अभी न उठाओ मुझ को....
कुछ चाक जिगर के सीने दो ज़रा अभी न उठाओ मुझ को....
अभी न उठाओ मुझ को....अभी न उठाओ मुझ को....
मंगलवार, 14 जुलाई 2009
क्या खोया क्या पाया.....
दुनिया के बनाए हर रिश्ते को शिद्दत से निभाया मैंने.....
फिर भी इक कसक सी दिल में उठती है की कुछ तो नदारद है....
शायद सब कुछ पा के भी कुछ भी न पाया मैंने.....
चमकते थे रौशनी में पर मोम से बने थे रिश्ते.....
अक्सर जज्बातों की आग में पिघलने से बचाया मैंने......
सुना था वक्त का पहिया वक्त बदल देता है कभी भी...
उसी वक्त के हाथों ख़ुद को नाचता पाया मैंने.....
गर तेरा सजदा करता तो शायद जन्नत नसीब पाता....
झूठे नातों को निभाने में बेशकीमती पल गवाया मैंने.....
शनिवार, 11 जुलाई 2009
कुछ पुलिंदे....
कुछ नम पड़े पर्चों को इक दूजे से चिपका पाया....
अश्क छलक पड़े जब उन दोनों को मैंने जुदा किया....
तू क्या समझेगी इन आँखों में क्यों तूफ़ान आया...
वो इक एक तेरा और एक मेरा ख़त था जो पुलिंदों में भी साथ था...
पर हम दोनों में से कोई ये रिश्ता न निभा पाया.....
फिर कुछ सोच कर फ़ैसला लिया तुझ से जुड़ी हर याद मिटा दूँ...
बस येही ख़याल दिल में लिए माचिस की कुछ तिल्लियां उठा लाया....
काश हम भी कुछ इन बेजुबान पन्नो से सीख पाते.....
जिन्होंने जलने से पहले तक इक दूजे का साथ निभाया....
तुझ पे नज़्म...
हर बाशिंदे का सरे-आम मद-मस्त होना काम हुआ....
तेरे हुज़ूर में जैसे ही मैंने एक नज़्म अर्ज़ की......
बैठे हुए हर शख्स के हाथों में छलका सा जाम हुआ.....
तेरी तारीफों के हुकूक में सब कुछ यूं गुम हुए.......
बातों ही बातों में हर तरफ़ क़त्ल-ऐ-आम हुआ.....
हर कोई मेरी तरफ़ तुझे समझने चला आया.....
तू ही है जिसकी वजह से मेरा इतना नाम हुआ....
अब से पहले हर कलाम मेरा अधूरा सा लगा करता था.....
तेरे आने से मेरी नज़्म का ही पूरा एहतराम हुआ....
तेरे आने से मेरी नज़्म का ही पूरा एहतराम हुआ....
गुरुवार, 9 जुलाई 2009
तेरा चेहरा नज़र आया!!!
फूलों में दिखी जब कोई परछाई, तेरा चेहरा नज़र आया.....
पलकें मूँद के जब याद की खुदाई, तेरा चेहरा नज़र आया.....
आईने में जा के अपनी सूरत दिखाई, तेरा चेहरा नज़र आया.....
दिल में झाँक के महसूस किया तो, प्यार गहरा नज़र आया......
सूरज की रौशनी में तेरा दीदार किया, रंग सुनेहरा नज़र आया....
खुशकिस्मती से तेरा संग मिला, कुछ और न मुझको नज़र आया......
तेरे सजदे में डूबा रहूँ हर पल, फिर खुदा न मुझको नज़र आया......
मैं काबा जाना छोड़ दूँ, मैं मदीना जाना छोड़ दूँ........
तेरे मुबारक क़दम मेरे दर पे पड़े, मेरा हाकिम ही मेरे घर आया.....
मेरा हाकिम ही मेरे घर आया.....
बुधवार, 8 जुलाई 2009
सिखा दिया मुझको!!!
जाडे की सर्द रातों में जब बदन में कंपकपी सी उठती थी......
काली पड़ी रात कुछ और काली हो के फलक से झुकती थी.....
उस पल तेरी गर्म साँसों की आहट का ख्याल जी को झिंझोड़ देता था....
तेरी दुनिया से जो दूर रहने का वादा किया, बे-रहमी से तोड़ देता था......
तब तू नही तेरे एहसासो के ख्याल से दिल बहला लिया करते थे....
तकिये को भर के बाहों में ख़ुद के करीब सुला लिया करते थे....
वक्त के थपेडो ने सच का आईना दिखा दिया मुझको....
तेरी बे-व्फाइयों के साथ जीना सिखा दिया मुझको......
तेरी बे-व्फाइयों के साथ जीना सिखा दिया मुझको......
कभी अचानक!!
उस में अपना चेहरा देख कुछ और बढ़ गई तन्हाई.....
कमरे में रखे कुछ गुलाब के फूल जो हमेशा मुस्कुराते थे....
पिछले कुछ दिनों मेरे साथ होकर उनकी सीरत भी मुरझाई....
इस घर का हरेक कोना जो मुझे अपना सा लगा करता था....
न जाने क्यूँ हर कोने ने मुझसे गोया ही आँख चुराई.......
अपनों के बीच में ही मैं हो गया हूँ यूं बेगाना........
मरने के बाद भी मांगता हूँ सब से कन्धा देने की दुहाई.....
शुक्रवार, 3 जुलाई 2009
खुदा के करीब.....
कुछ पास रहे ता उम्र मेरे, कुछ छोड़ गए मुझे रोने को......
पर जब से तुझे बनाया, अपना हमसफ़र ए मेरे खुदा.....
सब पाया मैंने जी भर के, कुछ बचा नही है खोने को......
सजदे में झुका के सर अपना, तुझ से बातें कर लेती हूँ.....
जन्नत सी तेरी उस दुनिया के, दीदार-ए-नज़र कर लेती हूँ....
है पास मेरे दुनिया लेकिन, कोई नही रूहानी शख्सियत का.....
नैनो में बसा मूरत तेरी, कलमा तेरे हक पढ़ लेती हूँ.....
नाचीज़ हूँ मैं तेरे दर की, कभी मुझको दूर न कर देना.....
गलती सी भी कोई गलती हो, बस माफ़ मुझे तू कर देना.....
मेरा सजदा तू, मेरा कलमा तू, तू है सबका, मेरा सब कुछ तू.......
फरियाद करूँ बस ये तुझ से, रहम ओ करम सब पे कर देना.......
कबूल कर ले बस येही दुआ.....झोली खुशियों से भर देना.....
झोली खुशियों से भर देना.....झोली खुशियों से भर देना.....
गुरुवार, 2 जुलाई 2009
हासिल...
ज़िन्दगी के सफ़र में चलते हुए कुछ राहगीर मिले अपने से....
घर से जब निकले अकेले ही थे अब सब लगने लगे हैं अपने से.....
कुछ गमो को दिल में ही रखा था आसुओं को सब से छुपाया था.....
आँखों ने सब कुछ बयां किया समझा नहीं जाता कहने से.....
कब तक अश्कों को समोए रखूं इन पलकों के परदे में......
बस हार गया हूँ किस्मत से, रोका नहीं जाता बहने से......
शायद खुदा मेरी फरियाद सुने जलते हुए दिल के कोने से.....
यह दोज़ख मैंने खुद हे चुनी, अब क्या हासिल हो रोने से....
अब क्या हासिल हो रोने से........
बुधवार, 1 जुलाई 2009
बस ऐसे ही....
जवाब था कुदरत उसकी आखों के काजल से किस्मत लिखती है.....
फिर उस ने मुझे से ये कहा तेरी माशूका दिखती काली है....
उस पर मेरा जवाब था तेरी आँख ही न देखने वाली है....
तन का रंग देख प्यार करना बस वक्त बिताना खाली है....
सच्चे दिल से जिस से हुई मुहब्बत फ़िर क्या गोरी क्या काली है......
उस पर अगला सवाल आया क्या वोह सच में तेरे अपने हैं.......
फिर कुछ यूं ही दिल से आवाज़ आई मेरे मन में जिसका ख्याल है.....
मेरी इन आँखों में जिसके हुस्न का जलाल है.......
वोह ही मेरे सपने और वोही मेरे अपने हैं......