गहरी नींद में ख्वाबो की दुनिया में जा के,
क्या मैं कभी सुकून की नींद सो सकूँगा,
अपने ज़ख्मो को हँसी का जामा पहना के,
क्या तेरे कंधे पे सर रख के रो सकूँगा,
बे-सब्र यादें जो मुकम्मिली के मुगालते में हैं,
क्या उन्हें दफन रखने में कामयाब हो सकूँगा,
तेरे ग़म में बंजर हुई दिल के ज़मीन पे,
क्या हँसते हुए फूलों के बीज बो सकूँगा,
तेरे बदन की खुशबु से पैदा हुए जज्बातों को,
क्या अश्कों की बरसात से भिगो सकूँगा,
तेरी यादें जिसे जीते जी मरने न दें,
क्या कब्र में भी चैन की नींद सो सकूँगा!
जीते जी चैन से आप बैठे नही,
जवाब देंहटाएंकब्र में फिर कहाँ से इसे पाओमे?
आयेगी जब कयामत की सुन्दर घड़ी,
जिन्न बन कर सजा काटते जाओगे।
भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंA very thoughtful poem!
जवाब देंहटाएंतेरी यादें जिसे जीते जी मरने न दें,
जवाब देंहटाएंक्या कब्र में भी चैन की नींद सो सकूँगा!
kai bar aise prashan uthate hai man mein par kya koi ans deta hai bhala..dil ko chhoo gayee rachna
last two lines are fabulous.. :)
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति और भाव के साथ लिखी हुई आपकी ये शानदार रचना मुझे बहुत पसंद आया !
जवाब देंहटाएंkaber he ek ese jagah hai ..jaha yaadein dafan hote hai ..
जवाब देंहटाएंaur maut he vo antim safar hai jaha insaan sukun pata hai !!
very nice composition !!
*****"Tere gam main banjar hui dil ke jammen pe,
जवाब देंहटाएंkya haste hue phulon ke beez bo sakunga"*****
How Beautifully you expressed ......
Amazing lines.. excellent composition....
Really so nice.
जवाब देंहटाएंतेरे ग़म में बंजर हुई दिल के ज़मीन पे,
जवाब देंहटाएंक्या हँसते हुए फूलों के बीज बो सकूँगा,
wah sawal khoob kaha hai magar ismein agar shiddat hai to zarur hoga