शनिवार, 11 जुलाई 2009

कुछ पुलिंदे....

आज ऐसे ही जब कुछ कागजों के पुलिंदों को खंगाला....
कुछ नम पड़े पर्चों को इक दूजे से चिपका पाया....
अश्क छलक पड़े जब उन दोनों को मैंने जुदा किया....
तू क्या समझेगी इन आँखों में क्यों तूफ़ान आया...
वो इक एक तेरा और एक मेरा ख़त था जो पुलिंदों में भी साथ था...
पर हम दोनों में से कोई ये रिश्ता न निभा पाया.....
फिर कुछ सोच कर फ़ैसला लिया तुझ से जुड़ी हर याद मिटा दूँ...
बस येही ख़याल दिल में लिए माचिस की कुछ तिल्लियां उठा लाया....
काश हम भी कुछ इन बेजुबान पन्नो से सीख पाते.....
जिन्होंने जलने से पहले तक इक दूजे का साथ निभाया....

8 टिप्‍पणियां:

  1. काश हम भी कुछ इन बेजुबान पन्नो से सीख पाते.....
    जिन्होंने जलने से पहले तक इक दूजे का साथ निभाया....

    bahut gahri baat kah di surender ji .....vadhaiyaan ji vadhaiyaan....!!

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  2. Soul touching:
    ..'बस येही ख़याल दिल में लिए माचिस की कुछ तिल्लियां उठा लाया....
    काश हम भी कुछ इन बेजुबान पन्नो से सीख पाते.....
    जिन्होंने जलने से पहले तक इक दूजे का साथ निभाया....
    Wonderful thoughts.Thanks for sharing.
    God bless.

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  3. Hello,

    Very well done!
    I must say that it is very fine creation of urs.

    Regards,
    Dimple
    http://poemshub.blogspot.com

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  4. kaash sab kuch mitaane se yaadein bhi mit paati..
    phir na yeh humein roz yun hi sataati..
    juda hone se pehle humne bhi to saath nibhaya hai
    yun hi nahi hai humein unki yaadein tadapaati..

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  5. मेरे ब्लॉग पर आने के लिए और टिपण्णी देने के लिए शुक्रिया! मेरे दूसरे ब्लोगों पर भी आपका स्वागत है!
    मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बहुत ही सुंदर भाव के साथ आपकी लिखी हुई ये रचना काबिले तारीफ है! अब तो मैं आपका फोल्लोवेर बन गई हूँ इसलिए आती रहूंगी!

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