कब से पलकें थी बिछायी इंतज़ार में
अब कहीं जा के दीदार ऐ यार होगा
फलक से क़दम तेरे ज़मी पे जब पड़ेंगे
दुल्हन की तरह इस धरती का श्रींगार होगा
इस्तकबाल में तेरे गली कूचा यूं सजेगा
चश्मदीदों के अरमां ये रूह-ऐ-रुखसार होगा
किसी अनजान राहगीर पे झलक न पड़ने देना
अपनी बदहवासी का वो ख़ुद जिम्मेदार होगा
तारीफ है उस खुदा की जिसने तुझे तराशा
सिर्फ़ हसीन मिट्टियों का वो शिल्पकार होगा
"Sirf hasin mittion ka wo shilpkar hoga"......
जवाब देंहटाएंbeautiful imagination.....
:-)
:) gr8
जवाब देंहटाएंacha likha hai
जवाब देंहटाएंVery beautiful...
जवाब देंहटाएंbahut hi achi rachna hai yeh!!
किसी अनजान राहगीर पे झलक न पड़ने देना
जवाब देंहटाएंअपनी बदहवासी का वो ख़ुद जिम्मेदार होगा..khoobsurati ka khoobsurat warnan...
बहुत सुंदर लिखा है आपने! सबसे अलग सबसे जुदा और एक नए अंदाज़ के साथ ! बहुत बढ़िया लगा!
जवाब देंहटाएंwaah waah waah waah..........aur phir waah waah waah waah
जवाब देंहटाएंkya khoob likha hai.....wakai us shilpkar ke kya kahne aur aapki soch ke kya kahne.
wow ...haseen mittioyo ka shilpkaar !!!
जवाब देंहटाएंa new word for me....unique way of thinking !!
Really bahoot achchha laga.
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