बुधवार, 8 जुलाई 2009

सिखा दिया मुझको!!!

जाडे की सर्द रातों में जब बदन में कंपकपी सी उठती थी......

काली पड़ी रात कुछ और काली हो के फलक से झुकती थी.....

उस पल तेरी गर्म साँसों की आहट का ख्याल जी को झिंझोड़ देता था....

तेरी दुनिया से जो दूर रहने का वादा किया, बे-रहमी से तोड़ देता था......

तब तू नही तेरे एहसासो के ख्याल से दिल बहला लिया करते थे....

तकिये को भर के बाहों में ख़ुद के करीब सुला लिया करते थे....

वक्त के थपेडो ने सच का आईना दिखा दिया मुझको....

तेरी बे-व्फाइयों के साथ जीना सिखा दिया मुझको......

तेरी बे-व्फाइयों के साथ जीना सिखा दिया मुझको......

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