ज़िन्दगी के सफ़र में चलते हुए कुछ राहगीर मिले अपने से....
घर से जब निकले अकेले ही थे अब सब लगने लगे हैं अपने से.....
कुछ गमो को दिल में ही रखा था आसुओं को सब से छुपाया था.....
आँखों ने सब कुछ बयां किया समझा नहीं जाता कहने से.....
कब तक अश्कों को समोए रखूं इन पलकों के परदे में......
बस हार गया हूँ किस्मत से, रोका नहीं जाता बहने से......
शायद खुदा मेरी फरियाद सुने जलते हुए दिल के कोने से.....
यह दोज़ख मैंने खुद हे चुनी, अब क्या हासिल हो रोने से....
अब क्या हासिल हो रोने से........
सही है रोने से कुछ भी हासिल नही होता है ...............सुनदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंAap ne good kaam kiya hai yeh likh ke :-)
जवाब देंहटाएंVery nice...
kya bat ha tussi to chaa gaye pa ji !!!
जवाब देंहटाएंbahut hi sahi likha hai..ekdum sach...
जवाब देंहटाएंab kya haasil hai rone se ....