अक्सर कभी सोचता हूँ ज़िन्दगी में क्या खोया क्या पाया मैंने.....
दुनिया के बनाए हर रिश्ते को शिद्दत से निभाया मैंने.....
फिर भी इक कसक सी दिल में उठती है की कुछ तो नदारद है....
शायद सब कुछ पा के भी कुछ भी न पाया मैंने.....
चमकते थे रौशनी में पर मोम से बने थे रिश्ते.....
अक्सर जज्बातों की आग में पिघलने से बचाया मैंने......
सुना था वक्त का पहिया वक्त बदल देता है कभी भी...
उसी वक्त के हाथों ख़ुद को नाचता पाया मैंने.....
गर तेरा सजदा करता तो शायद जन्नत नसीब पाता....
झूठे नातों को निभाने में बेशकीमती पल गवाया मैंने.....
चमकते थे रौशनी में पर मोम से बने थे रिश्ते.....
जवाब देंहटाएंअक्सर जज्बातों की आग में पिघलने से बचाया मैंने......
wah kitna gahra likha hai bhav..sach kahka kitna dard hota hai najab riste pighlte hai kahin...
aapki kalam kamal hai
acha laga aapko padne ka mauka mila mujhe
achcha hai
जवाब देंहटाएंVery beautiful & has a great depth!
जवाब देंहटाएंKeep writing..
Regards,
Dimple
http://poemshub.blogspot.com
बहुत ही गहरी भाव के साथ लिखी हुई आपकी ये लाजवाब रचना बहुत अच्छी लगी!
जवाब देंहटाएं"उसी वक्त के हाथों ख़ुद को नाचता पाया मैंने....."
जवाब देंहटाएंIndeed we are merely playthings, dancing to the tune with no control of ours. A brilliant creation!
http://literarybonanza.blogspot.com/
http://gurumehar.blogspot.com/
ek aur dil ko chhoo lene wali kavita..
जवाब देंहटाएंreally gd one
It is one of the best cuplet i have ever read... keep it up :)
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