शनिवार, 11 जुलाई 2009

तुझ पे नज़्म...

तेरे अनवार-ऐ-हुस्न का चर्चा जब महफिल में आम हुआ....
हर बाशिंदे का सरे-आम मद-मस्त होना काम हुआ....
तेरे हुज़ूर में जैसे ही मैंने एक नज़्म अर्ज़ की......
बैठे हुए हर शख्स के हाथों में छलका सा जाम हुआ.....
तेरी तारीफों के हुकूक में सब कुछ यूं गुम हुए.......
बातों ही बातों में हर तरफ़ क़त्ल-ऐ-आम हुआ.....
हर कोई मेरी तरफ़ तुझे समझने चला आया.....
तू ही है जिसकी वजह से मेरा इतना नाम हुआ....
अब से पहले हर कलाम मेरा अधूरा सा लगा करता था.....
तेरे आने से मेरी नज़्म का ही पूरा एहतराम हुआ....
तेरे आने से मेरी नज़्म का ही पूरा एहतराम हुआ....

6 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर एहसास है इस रचना में बहुत खूब
    तेरे आने से मेरी नज़्म का ही पूरा एहतराम हुआ....

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  2. आपकी कविता अच्छी लगी
    शुक्रिया

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  3. Sir urdu se labrez hai composition, shayeree karte karte hindi ko mat bhul jana :) , waise really the good one.. i should say u r writing like a professional!!!

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  4. तू ही है जिसकी वजह से मेरा इतना नाम हुआ....

    very true sir ji..

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  5. Exceptional and stunning!
    Great thoughts expressed with right words.
    Amazing...

    Take care
    Regards,
    Dimple
    http://poemshub.blogspot.com

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  6. वाह वाह क्या बात है! बहुत बढ़िया!

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