गुरुवार, 23 जुलाई 2009

क्या ये पैसा सब कुछ खरीद सकता है|

क्या ये पैसा सब कुछ खरीद सकता है
दिल का चैन पलकों में नैन और हर पल का सुकून
बच्चो की किलकारियां बिछडे दोस्तों की यारियां
बुजुर्गों का आशीर्वाद अपने पुरखों की याद
माँ की प्यार भरी गोद भाई बहनों का कुछ पाने का अनुरोध
शरारतों पर पिता की बे-इन्तेहाँ झिडकियां
रात को दोस्तों संग भागने के लिए खुल छोड़ी खिड़कियाँ
महबूबा के तोहफे के लिए इकट्ठे किए हुए पैसे
हफ्ते भर खाना खाए बिना जमा किए हो जैसे तैसे
वोह कुछ अच्छा करने पर दोस्तों की मिली तालियाँ
सुबह के चार बजे हॉस्टल में मैगी की भरी थालियाँ
क्या ये पैसा सब कुछ खरीद सकता
अब क्या कहूं दोस्तों हर पैगाम बिकता है
बच्चो से लेकर बड़ों तक हर इंसान बिकता है
शैतान की तो छोड़ दो भगवान् बिकता है
फ़र्ज़ धर्म हया और ईमान बिकता है
क्या ये पैसा सब कुछ खरीद सकता है
हाँ ये पैसा सब कुछ खरीद सकता है

5 टिप्‍पणियां:

  1. excellent sir...
    thanks you very much.....
    i really never expected ..
    so beautifully you contend it...

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  2. A true depiction of the modern materialistic world.
    Another wonderful creation of yours.

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  3. बहुत बढ़िया लिखा है आपने! पैसा सब कुछ खरीद नहीं सकता ये बात सौ फीसदी सही है! मुझे आपका ये कविता बेहद पसंद आया!

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  4. paisa in me se shayad sabhi ko kya kisi ko bhi khareed n paaye.lekin paisa n hone pr inme se adhikansh khud b khud gayab bhi ho jayenge yeh bhi such hai kadva hi sahi
    shyam skha

    aur aapke blog pr tipniyon ko htotsahit karta hai yeh bairee word verification ise zld htayen

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