मंगलवार, 25 अगस्त 2009
सिर्फ़ तेरे लिए!
सपनो का महल तेरे लिए बनाऊंगा,
बर्क़तों से गुलज़ार ये जहाँ हो जाए,
तेरे सजदे में ये दिन रात बिताऊंगा,
दुनिया से चुरा के तुझ को मैं,
दिल की खामोश परतों पे सुलाऊंगा,
धडकनों का एहसासतेरे दिल को करा के,
तेरी साँसों को अपनी साँसों से मिलाऊंगा,
मयकश की तरह तेरी आँखों में डूब के,
मद के नशीले जाम पिए जाऊंगा,
होशो-हवास खो के जब गिरने लगूंगा,
यकीन है ख़ुद को तेरी बाहों में पाउँगा,
मस्जिद में सर झुका के जब दुआ करूँगा,
ता-उम्र तेरे संग रहने की फरियाद लगाऊंगा!
रविवार, 23 अगस्त 2009
यह सब क्या हैं तेरे आगे!
ये सब क्या हैं तेरे आगे,
गुलाब की पंखुडियां और भवरे मंडराते,
ये सब क्या हैं तेरे आगे,
सूरज की मीठी तपिश में पक्षी चेहचाहाते,
ये सब क्या हैं तेरे आगे,
पहाडों से छम छम ये झरने लहलहाते,
यह सब क्या हैं तेरे आगे,
मयकश साकी की शान में बंदिशें सुनाते,
यह सब क्या हैं तेरे आगे,
पीर खुदा के सजदे में कलमे जो गाते,
यह सब क्या हैं तेरे आगे,
जन्नत-ऐ-हूर भी तेरे हुस्न के चर्चे गाते,
यह सब क्या हैं तेरे आगे!
बुधवार, 19 अगस्त 2009
कितना आसान होता है न!
ख्वाबों की मीठी बातें सुना के,
कितना आसान होता है न रिश्तों को यूं तोड़ देना,
ज़िन्दगी के हर क़दम साथ निभा के,
लडखडाते क़दमो से बाहों में उठा के,
कितना आसान होता है न राहों को यूं मोड़ देना,
गुमनामियों की गर्त में रौशनी दिखा के,
फिर कलाई पे अपनी नाम मेरा लिखा के,
कितना आसान होता है न बीच राह यूं छोड़ देना,
ज़माने से छुप छुप संग मेरे घूम के,
लरज़ते लबों से मेरे लबों को चूम के,
कितना आसान होता है न किसी और से नाता जोड़ लेना,
आखिरी वक्त तुझे देखने की आरजूएं सजा के,
फिर हमेशा की तरह तुझे न करीब पा के,
कितना आसान होता है न साँसों की ज़ंजीर यूं तोड़ देना!
मंगलवार, 18 अगस्त 2009
शायद फिर न उठ पाऊँ!
क्या मिला मुझे दुनिया में अपने होने के बाद,
अश्कों ने साथ छोड़ दिया हर पल रोने के बाद,
किया करते थे गुमां जिनकी दोस्तियों पे हम,
न रहे वो भी अपने सब कुछ खोने के बाद,
अब क्यों मैं हर पल हँसता हूँ रोने का बाद,
क्या जीना फिर भी पड़ता है खोने के बाद,
जाते जाते मेरा आखिरी सलाम तू ले जा,
शायद फिर न उठ पाऊँ रात सोने के बाद!
मंगलवार, 11 अगस्त 2009
कुछ दिन और बरसे!
सुकून मिला इन आखों को जो कब से तरसे,
पलकें झुकायें मौसीकी में चले जाते हैं वो,
खुदाया एक बार देख लें मुहब्बत की नज़र से,
जुल्फों के घने लच्छे लहराए कुछ इस तरह,
बेशर्म होके दुपट्टा भी उड़ गया हो सर से,
दुआ करू वो आए और लग जाए गले से,
किसी और नही कम से कम बिजली के डर से,
ना जाने दूँ उसे मैं दूर इन आगोशियों से,
खुदा बादल से कह दो के कुछ दिन और बरसे!
सोमवार, 10 अगस्त 2009
बन न पाया काजी!
इश्क के क़ल्मे पढ़ पढ़ बैठा न बन पाया काजी,
उम्रो उम्र मदीने फिर के न बन पाया हाजी,
तेरे जानिब सजदे करके न जित पाया बाजी,
तलवारों के महरम सदके न बन पाया गाजी,
सूखे फूलों की तासीर को न कर पाया ताज़ी,
हाथों में दिल रख भी तुझको न कर पाया राज़ी,
हिना-ऐ-मुल्हिद भी न तेरे हाथों पर थी साजी,
बिन तेरे मेरी रूह भी कर गई मुझ से दगाबाजी!
गुरुवार, 6 अगस्त 2009
दर्द!
दफ़नाने मेरी मिटटी को किस्मत में दो गज ज़मी नही थी,
हलकी हलकी सी नमी तो बदन को महसूस हुई लेकिन,
मेरे जाने की खुशबु ऐ गम अभी पूरी तरह रमी नही थी,
शायद तेरे इंतज़ार में जो अश्को के दरिया बहाए,
मर के भी रफ़्तार उनकी दिल में मेरे थमी नही थी,
गर इक बार तू जनाजे पे नज़र-ऐ-इनायत कर देती,
ख्वाहिश पूरी हो जाती जो बर्फ नुमा जमी नही थी,
बस अब चलते हैं सफर पूरा कर के इस दुनिया का,
धुंधली हो गयी आरजूएं जो शायद कभी घनी नही थी!
मंगलवार, 4 अगस्त 2009
बारिश के इंतज़ार में!
कब से हैं उम्मीद लगाए नैन भी अब तो तरस गए,
उमस भरी गर्मी की दुपहरिया जला के चली जाती है,
हर वक्त पसीना पी पी के होठ भी अब तो लरज़ गए,
फसलें भी अब सूख गई हर पत्ता झड़ के गिरता है,
तब भी न पसीजा दिल तेरा आए और बस गरज गए,
क्या बोयेंगे किसान भाई और क्या वोह हमें खिलाएंगे,
इक तेरी जो टेढी नज़र हुई जागीरों में बस क़र्ज़ गए,
अब तो बरसो यूं टूट के रिम झिम कर दो बगिया को,
हर ज़र्रा खुशी से गा उठे और पूरे तेरे फ़र्ज़ हुए!
रविवार, 2 अगस्त 2009
फ्रेंडशिप डे पर कुछ ख़ास!
जो रूठे हैं काफ़ी दिनों से आओ चलो उन्हें मना लें,
येही सोच के आज सुबह उन्हें इक संदेश भेजा,
दिन में रात न हो जाए गर वो उस पे नज़र भी डालें,
न जाने क्या खता हुई जो वो इस कदर खफा हैं,
गनीमत है जो सामने से निकले और नज़र मिला लें,
गर गुनाह हुआ है हमसे तो कम से कम बताएं ज़रा,
ऐसे कैसे हम अपने आप को गुनेहगार बना लें,
सोचा था की चलो आज उन्हें मना ही लेंगे हम,
दिन ढलते ही ये आलम है बस ये कड़वी यादें भुला लें,
उम्मीद में की अगले दोस्ती दिवस पे कुछ वक्त संग बिताएं,
आओ खुदा से उनकी सलामती की दुआ मना लें!
बुधवार, 29 जुलाई 2009
क्या कब्र में भी चैन की नींद सो सकूँगा!
क्या मैं कभी सुकून की नींद सो सकूँगा,
अपने ज़ख्मो को हँसी का जामा पहना के,
क्या तेरे कंधे पे सर रख के रो सकूँगा,
बे-सब्र यादें जो मुकम्मिली के मुगालते में हैं,
क्या उन्हें दफन रखने में कामयाब हो सकूँगा,
तेरे ग़म में बंजर हुई दिल के ज़मीन पे,
क्या हँसते हुए फूलों के बीज बो सकूँगा,
तेरे बदन की खुशबु से पैदा हुए जज्बातों को,
क्या अश्कों की बरसात से भिगो सकूँगा,
तेरी यादें जिसे जीते जी मरने न दें,
क्या कब्र में भी चैन की नींद सो सकूँगा!
मंगलवार, 28 जुलाई 2009
धुआं उठता है कहीं....
आंसुओं का सैलाब उठा....लगा के ज़ख्म पिघलने लगे,
अब तक जो दबाये रखे....दिल की गर्त गहराईयों में,
ख्वाब रूह तक जला गए....फफोलों की तरह निकलने लगे,
चाहत-ऐ-सुकून के जानिब....ख़ुद को सर्द पानी में धकेला,
बदनसीबी की इन्तेहाँ हुई....ज़ख्म मुझ ही को निगल्ने लगे,
खुदा ने भी रुख फेर लिया....मुझे मरते को न बचाने आया,
दोज़खी नुमाइंदे सर उठा....गोया ही मुझे लिए चलने लगे!
सोमवार, 27 जुलाई 2009
शिल्पकार!!
अब कहीं जा के दीदार ऐ यार होगा
फलक से क़दम तेरे ज़मी पे जब पड़ेंगे
दुल्हन की तरह इस धरती का श्रींगार होगा
इस्तकबाल में तेरे गली कूचा यूं सजेगा
चश्मदीदों के अरमां ये रूह-ऐ-रुखसार होगा
किसी अनजान राहगीर पे झलक न पड़ने देना
अपनी बदहवासी का वो ख़ुद जिम्मेदार होगा
तारीफ है उस खुदा की जिसने तुझे तराशा
सिर्फ़ हसीन मिट्टियों का वो शिल्पकार होगा
गुरुवार, 23 जुलाई 2009
क्या ये पैसा सब कुछ खरीद सकता है|
दिल का चैन पलकों में नैन और हर पल का सुकून
बच्चो की किलकारियां बिछडे दोस्तों की यारियां
बुजुर्गों का आशीर्वाद अपने पुरखों की याद
माँ की प्यार भरी गोद भाई बहनों का कुछ पाने का अनुरोध
शरारतों पर पिता की बे-इन्तेहाँ झिडकियां
रात को दोस्तों संग भागने के लिए खुल छोड़ी खिड़कियाँ
महबूबा के तोहफे के लिए इकट्ठे किए हुए पैसे
हफ्ते भर खाना खाए बिना जमा किए हो जैसे तैसे
वोह कुछ अच्छा करने पर दोस्तों की मिली तालियाँ
सुबह के चार बजे हॉस्टल में मैगी की भरी थालियाँ
क्या ये पैसा सब कुछ खरीद सकता
अब क्या कहूं दोस्तों हर पैगाम बिकता है
बच्चो से लेकर बड़ों तक हर इंसान बिकता है
शैतान की तो छोड़ दो भगवान् बिकता है
फ़र्ज़ धर्म हया और ईमान बिकता है
क्या ये पैसा सब कुछ खरीद सकता है
हाँ ये पैसा सब कुछ खरीद सकता है
बुधवार, 22 जुलाई 2009
ज़रा सोच के देखो!
पत्थर में भी खुदा के दीदार होंगे, ज़रा सोच के देखो
हर रश्क ज़िन्दगी के पार होंगे, ज़रा सोच के देखो
दुश्मनों के दरमियाँ भी यार होंगे, ज़रा सोच के देखो
तबाह हुए बाग़ भी गुलज़ार होंगे, ज़रा सोच के देखो
खुदा से भी नैन यह चार होंगे, ज़रा सोच के देखो
इक दो नही बारम्बार होंगे, ज़रा सोच के देखो
मुसीबतों के दोज़ख भी पार होंगे, ज़रा सोच के देखो
इलाही जन्नत के दीदार होंगे, ज़रा सोच के देखो
आँखों को मूंदने के दरकार होंगे, ज़रा सोच के देखो
तेरे महबूब ही तेरे एहेल्कार होंगे, ज़रा सोच के देखो
ज़रा सोच के देखो, ज़रा सोच के देखो
मंगलवार, 21 जुलाई 2009
तेरा इंतज़ार !
क्या आज भी दिन मेरे लिए वैसे ही हैं
ये खिलखिलाते हुए फूल तेरे जैसे ही हैं
तू शायद दूर जा के भूल गई हो मुझको
हम तेरे इंतज़ार में काफिर वैसे ही हैं
तेरी आहटों का तसव्वुर ख्याल-ऐ-दिल में हैं
तेरे एहसासों की एहमियत पहले जैसे ही हैं
हर शै में तुझे पल पल मैं तलाशता हूँ
तुझे ढूँढ लेने की जुनूनियत वैसे ही हैं
अब और न तड़पा पहलु में आ भी जा दिलबर
मरते दम तक तेरी चाहत पहले जैसे ही है.
शुक्रवार, 17 जुलाई 2009
इक बेटी के दिल से.......
तेरा और बापू का अंगना खुशियों से भर पाऊँगी....
लंबे वक्त से इंतज़ार में हूँ कब तेरे आगोश में समाऊँगी.....
तेरे कोमल होटों को मैं अपने नन्हे हाथो से छू पाउंगी.....
उम्मीद करती हूँ माँ तुझसे अथाह प्यार मैं पाऊँगी.....
तेरे इक स्पर्श से ही रोते रोते चुप जाउंगी......
कभी अकेली महसूस करू तुझ से हर बात बताऊंगी....
रब से भले छुपा लूँ मैं तुझ से न कभी भी छुपाऊँगी.....
हर मुमकिन कोशिश करुँगी मैं तुझको न कभी मैं रुलाऊंगी.....
अपने को अतीत में देखेगी जब हाथों में मेहँदी लगाउंगी....
जिस पल डोली में बैठूंगी नैनो को रोक न पाऊँगी......
बस कस के लग कर गले तेरे मैं रोती रोती जाउंगी.......
है तूने मुझको जन्म दिया एहसान भुला न पाऊँगी.....
एहसान भुला न पाऊँगी.....एहसान भुला न पाऊँगी.....
बुधवार, 15 जुलाई 2009
अभी न उठाओ मुझको....
एहसासों को कुछ और नम होने दो ज़रा अभी न उठाओ मुझ को....
मुझ ज़र्रे को बालों का फूल होने दो ज़रा अभी न उठाओ मुझ को....
खुदा समझ के सजदे में खोने दो ज़रा अभी न उठाओ मुझ को....
अपनी बाहों के दरमियान समोने दो ज़रा अभी न उठाओ मुझ को....
ख़ुद को झील-नुमा आँखों में डुबोने दो ज़रा अभी न उठाओ मुझ को....
अपने ख़्वाबों में आ के खोने दो ज़रा अभी न उठाओ मुझ को....
अपने आगोश में भर के जीने दो ज़रा अभी न उठाओ मुझ को....
रुखसार की मय मुझे पीने दो ज़रा अभी न उठाओ मुझ को....
कुछ चाक जिगर के सीने दो ज़रा अभी न उठाओ मुझ को....
अभी न उठाओ मुझ को....अभी न उठाओ मुझ को....
मंगलवार, 14 जुलाई 2009
क्या खोया क्या पाया.....
दुनिया के बनाए हर रिश्ते को शिद्दत से निभाया मैंने.....
फिर भी इक कसक सी दिल में उठती है की कुछ तो नदारद है....
शायद सब कुछ पा के भी कुछ भी न पाया मैंने.....
चमकते थे रौशनी में पर मोम से बने थे रिश्ते.....
अक्सर जज्बातों की आग में पिघलने से बचाया मैंने......
सुना था वक्त का पहिया वक्त बदल देता है कभी भी...
उसी वक्त के हाथों ख़ुद को नाचता पाया मैंने.....
गर तेरा सजदा करता तो शायद जन्नत नसीब पाता....
झूठे नातों को निभाने में बेशकीमती पल गवाया मैंने.....
शनिवार, 11 जुलाई 2009
कुछ पुलिंदे....
कुछ नम पड़े पर्चों को इक दूजे से चिपका पाया....
अश्क छलक पड़े जब उन दोनों को मैंने जुदा किया....
तू क्या समझेगी इन आँखों में क्यों तूफ़ान आया...
वो इक एक तेरा और एक मेरा ख़त था जो पुलिंदों में भी साथ था...
पर हम दोनों में से कोई ये रिश्ता न निभा पाया.....
फिर कुछ सोच कर फ़ैसला लिया तुझ से जुड़ी हर याद मिटा दूँ...
बस येही ख़याल दिल में लिए माचिस की कुछ तिल्लियां उठा लाया....
काश हम भी कुछ इन बेजुबान पन्नो से सीख पाते.....
जिन्होंने जलने से पहले तक इक दूजे का साथ निभाया....
तुझ पे नज़्म...
हर बाशिंदे का सरे-आम मद-मस्त होना काम हुआ....
तेरे हुज़ूर में जैसे ही मैंने एक नज़्म अर्ज़ की......
बैठे हुए हर शख्स के हाथों में छलका सा जाम हुआ.....
तेरी तारीफों के हुकूक में सब कुछ यूं गुम हुए.......
बातों ही बातों में हर तरफ़ क़त्ल-ऐ-आम हुआ.....
हर कोई मेरी तरफ़ तुझे समझने चला आया.....
तू ही है जिसकी वजह से मेरा इतना नाम हुआ....
अब से पहले हर कलाम मेरा अधूरा सा लगा करता था.....
तेरे आने से मेरी नज़्म का ही पूरा एहतराम हुआ....
तेरे आने से मेरी नज़्म का ही पूरा एहतराम हुआ....
गुरुवार, 9 जुलाई 2009
तेरा चेहरा नज़र आया!!!
फूलों में दिखी जब कोई परछाई, तेरा चेहरा नज़र आया.....
पलकें मूँद के जब याद की खुदाई, तेरा चेहरा नज़र आया.....
आईने में जा के अपनी सूरत दिखाई, तेरा चेहरा नज़र आया.....
दिल में झाँक के महसूस किया तो, प्यार गहरा नज़र आया......
सूरज की रौशनी में तेरा दीदार किया, रंग सुनेहरा नज़र आया....
खुशकिस्मती से तेरा संग मिला, कुछ और न मुझको नज़र आया......
तेरे सजदे में डूबा रहूँ हर पल, फिर खुदा न मुझको नज़र आया......
मैं काबा जाना छोड़ दूँ, मैं मदीना जाना छोड़ दूँ........
तेरे मुबारक क़दम मेरे दर पे पड़े, मेरा हाकिम ही मेरे घर आया.....
मेरा हाकिम ही मेरे घर आया.....
बुधवार, 8 जुलाई 2009
सिखा दिया मुझको!!!
जाडे की सर्द रातों में जब बदन में कंपकपी सी उठती थी......
काली पड़ी रात कुछ और काली हो के फलक से झुकती थी.....
उस पल तेरी गर्म साँसों की आहट का ख्याल जी को झिंझोड़ देता था....
तेरी दुनिया से जो दूर रहने का वादा किया, बे-रहमी से तोड़ देता था......
तब तू नही तेरे एहसासो के ख्याल से दिल बहला लिया करते थे....
तकिये को भर के बाहों में ख़ुद के करीब सुला लिया करते थे....
वक्त के थपेडो ने सच का आईना दिखा दिया मुझको....
तेरी बे-व्फाइयों के साथ जीना सिखा दिया मुझको......
तेरी बे-व्फाइयों के साथ जीना सिखा दिया मुझको......
कभी अचानक!!
उस में अपना चेहरा देख कुछ और बढ़ गई तन्हाई.....
कमरे में रखे कुछ गुलाब के फूल जो हमेशा मुस्कुराते थे....
पिछले कुछ दिनों मेरे साथ होकर उनकी सीरत भी मुरझाई....
इस घर का हरेक कोना जो मुझे अपना सा लगा करता था....
न जाने क्यूँ हर कोने ने मुझसे गोया ही आँख चुराई.......
अपनों के बीच में ही मैं हो गया हूँ यूं बेगाना........
मरने के बाद भी मांगता हूँ सब से कन्धा देने की दुहाई.....
शुक्रवार, 3 जुलाई 2009
खुदा के करीब.....
कुछ पास रहे ता उम्र मेरे, कुछ छोड़ गए मुझे रोने को......
पर जब से तुझे बनाया, अपना हमसफ़र ए मेरे खुदा.....
सब पाया मैंने जी भर के, कुछ बचा नही है खोने को......
सजदे में झुका के सर अपना, तुझ से बातें कर लेती हूँ.....
जन्नत सी तेरी उस दुनिया के, दीदार-ए-नज़र कर लेती हूँ....
है पास मेरे दुनिया लेकिन, कोई नही रूहानी शख्सियत का.....
नैनो में बसा मूरत तेरी, कलमा तेरे हक पढ़ लेती हूँ.....
नाचीज़ हूँ मैं तेरे दर की, कभी मुझको दूर न कर देना.....
गलती सी भी कोई गलती हो, बस माफ़ मुझे तू कर देना.....
मेरा सजदा तू, मेरा कलमा तू, तू है सबका, मेरा सब कुछ तू.......
फरियाद करूँ बस ये तुझ से, रहम ओ करम सब पे कर देना.......
कबूल कर ले बस येही दुआ.....झोली खुशियों से भर देना.....
झोली खुशियों से भर देना.....झोली खुशियों से भर देना.....
गुरुवार, 2 जुलाई 2009
हासिल...
ज़िन्दगी के सफ़र में चलते हुए कुछ राहगीर मिले अपने से....
घर से जब निकले अकेले ही थे अब सब लगने लगे हैं अपने से.....
कुछ गमो को दिल में ही रखा था आसुओं को सब से छुपाया था.....
आँखों ने सब कुछ बयां किया समझा नहीं जाता कहने से.....
कब तक अश्कों को समोए रखूं इन पलकों के परदे में......
बस हार गया हूँ किस्मत से, रोका नहीं जाता बहने से......
शायद खुदा मेरी फरियाद सुने जलते हुए दिल के कोने से.....
यह दोज़ख मैंने खुद हे चुनी, अब क्या हासिल हो रोने से....
अब क्या हासिल हो रोने से........
बुधवार, 1 जुलाई 2009
बस ऐसे ही....
जवाब था कुदरत उसकी आखों के काजल से किस्मत लिखती है.....
फिर उस ने मुझे से ये कहा तेरी माशूका दिखती काली है....
उस पर मेरा जवाब था तेरी आँख ही न देखने वाली है....
तन का रंग देख प्यार करना बस वक्त बिताना खाली है....
सच्चे दिल से जिस से हुई मुहब्बत फ़िर क्या गोरी क्या काली है......
उस पर अगला सवाल आया क्या वोह सच में तेरे अपने हैं.......
फिर कुछ यूं ही दिल से आवाज़ आई मेरे मन में जिसका ख्याल है.....
मेरी इन आँखों में जिसके हुस्न का जलाल है.......
वोह ही मेरे सपने और वोही मेरे अपने हैं......
सोमवार, 29 जून 2009
हाँ वोह तुम ही हो.....
जिसे कभी ख्वाबो में तराशा था......दिल की गहराईयों में तलाशा था.....
हाँ वोह तुम ही हो......
दोस्तों से बातें किया करती थी.....जिसके बारे में सोच के लम्बी रातें किया करती थी....
हाँ वोह तुम ही हो.........
छुप छुप के जिस से मिलती थी.....तन्हाई में तारे गिनती थी....
हाँ वोह तुम ही हो.......
घरवालो से जिसे मिलाने से डरती थी.....इसी बात को सोच कर तिल तिल मैं हर पल मरती थी......
हाँ वोह तुम ही हो.......
फ़िर एक दिन बड़ी मुश्किल से हिम्मत जुटा पायी.....बाबा को जिसके बारे में बता पाई.....
हाँ वोह तुम ही हो......
फिर वोह दिन भी आया जब तुम बरात ले आए....मेरे जीवन में खुशियों की सौगात ले आए....
हाँ वोह तुम ही हो........
अब जिसकी बाहों में हर वक्त मुझे रहना है.....मिल के जिसके साथ दुनिया का हर सुख दुःख सहना है......
हाँ वोह तुम ही हो.......
ये दुआ करती हूँ खुदा से जो हमेशा सलामत रहे.....जिसकी लम्बी उम्र मेरी ज़िन्दगी की सबसे बड़ी नेयामत रहे....
हाँ वोह तुम ही हो.......
तुम कभी मुझे तड़पता छोड़ नही जाना......कभी दिल को मेरे यूं तोड़ नही जाना........
जिसकी मोहब्बत मेरे दिल में पलती है.....जिसको साँसों से मेरी साँसे चलती हैं.....
हाँ वोह तुम ही हो.......हाँ वोह तुम ही हो.......
नज़र आता है!!
आईने में जब भी ख़ुद को देखूं तेरा साया गहरा नज़र आता है.....
घर के बगीचे में तुझे फूल समझ के जब भी छूना चाहू......
कमबख्त तेरे आस पास भवरों का पहरा नज़र आता है.....
कभी चुपके से आँखें बंद कर तेरे बारे में जब सोचूँ.......
मैकदे में नशेमन मेरा बस लहरा नज़र आता है....
तेरी झील जैसी आँखों में जब उतरने को जी चाहे......
कुछ ओस की बूंदों का छरहरा नज़र आता है......
उस वक्त का इंतज़ार है जब तू मेरे घर आए......
मेरी माँ के हाथों में मुझे बस सेहरा नज़र आता है.....
आहट !
वोह जो हो चुके हैं हमसे दूर उन्हें खयालो में लाये जाते हैं......
जो ख़ुद बुझा गए हैं इस दिल से मुहब्बत के चरागों को.....
हम क्यों ठंडी पड़ी राख से शम्मा को जलाए जाते हैं.....
इक वक्त था जब उन्ही से सुबह और उन्ही से रात होती थी.....
अजनबियों से भी गाहे बगाहे उन्ही की बात होती थी.......
अब वक्त ने ही कुछ ऐसे करवट ले ली मुझे जताने को.....
अजनबियों में ही उन्हें पाने की आस लगाए जाते हैं......
चलो घड़ी भी आ गई है इस duniya से rukhsat honay की......
ruhani jannat के intezaar में तेरी मुहब्बत की jannat khone की.....
तू जिस हाल में rahey हमेशा muskuraati rahey......
मर के भी तेरी salamati की खुदा से दुआ किए जाते हैं.....
शुक्रवार, 26 जून 2009
अपने बहुत याद आते हैं
कुछ थक के हम यूं चूर हुए.....पर अपने बहुत याद आते हैं....
हैं लोग बहुत आगे पीछे.....पर अपने बहुत याद आते हैं....
कोई यहाँ कोई वहां खीचे....पर अपने बहुत याद आते हैं....
तंदूर की मिटटी की खुशबु....यकलख्त कभी आ जाती है.....
वोह माँ के हाथ की रोटी की....यादों को संजो ले आती है......
माँ जैसे तो है बहुत मिले.....जो लोरी गा के सुनाते हैं......
फिर भी अधूरी ख्वाहिश है....पर अपने बहुत याद आते हैं....
कुछ लम्हे कहूं ख़ुद पे बीते.......हर वक्त मुझे तद्पाते हैं....
कुछ पाकर मैंने सब खोया......तन्हाई में आंसू बहाते हैं......
कुछ दोस्त मिले हैं अपनों से....अपनों की कमी भर जाते हैं....
सोते हैं यादों संग उनकी.....पर अपने बहुत याद आते हैं....
खुद ही को न समझ पाए
सोचा था सब कुछ पा लेंगे हम .....खुद ही को न समझ पाए ....
क्यों रक्खी उमीदें दूसरों से ...... खुद ही को न समझ पाए ....
बस दर्द हुआ जब टूटे ख्वाब..... खुद ही को न समझ पाए ....
अपनों ने ही क्यों छोड़ा साथ.....खुद ही को न समझ पाए ....
छोडेगी नही यूं पीछा याद........खुद ही को न समझ पाए ....
अब वक्त आ गया जाने का.....खुद ही को न समझ पाए ....
वीराना सा क्यों है कब्र पर......खुद ही को न समझ पाए ....
खुदा भी शायद न समझेगा...खुद ही को न समझ पाए ....
tasveer-e-yaar
फिर भी आज तक हमें बस इंतज़ार है......
लाख कहे ज़माना हमें दीवाना चाहे.....
यह दिल तेरी राहों का इक खाकसार है....
दीवानों को यह दुनिया करती रही है रुसवा.....
दुनिया के इन दिलों में शैतान सवार है......
तेरी राह से तो अब बस कजा दूर करेगी.....
क्योकि वोह अब हमारइ इक कर्ज़दार है.....