शनिवार, 26 जून 2010

मेरी पहली पंजाबी रचना!


कृपया तस्वीर पर क्लिक करें!
दोस्तों,

आज मैंने अपनी पहली पंजाबी रचना लिखी है! मेरे एक मित्र हैं हरप्रीत सिंह जो दुबई में रहते हैं उन्होंने मुझ से कहा एक दिन की आप क्यों पंजाबी में नहीं लिखते! तो मैंने सोचा की आज लिख कर देखूं कैसा परिणाम आता है!

आप लोगों में से कुछ पंजाबी शायद न पढ़ पाएं, इसीलिए अपनी रचना हिंदी में भी लिख रहा हूँ! अगर फिर भी किसी को समझना हो तो बे-हिचक मुझे ईमेल भेज दें!

पंजाबी फोंट स्वीकार कर रहा था मेरा ब्लॉगर टेक्स्ट बॉक्स सो पिक्चर लगा रहा हूँ उन दोस्तों के लिए जो पंजाबी पढना जानते हैं!



"पलकां नु विछाया सजणा"


अज कल्लेयाँ बैठे हंजुआं नु पुछेया मैं,
कानू इन्ना लम्मा विछोडा पाया सजणा,
जदों रो रो के टुट बैठी हार के मैं,
तेरी तस्वीर नु घुट छाती लाया सजणा,
अक्खां बंद कर सोचन लग्गी रब बारे,
तेरा चेरा अक्खां अग्गे आया सजणा,
तेरे सजदे गल्लां कर के कुज देर,
बलदी होई अग्ग नु बुझाया सजणा,
तेरे बाजों जी हुन्न लग्गदा नि मेरा,
रावां तक्क तक्क जी भर आया सजणा,
हुन्न देर न कर आ बना ले अप्पना,
तेरे लई पलकां नु मैं विछाया सजणा!

मंगलवार, 22 जून 2010

सावन के झूलों की तरह!

जब तुम दूर गए तो पतझड़ था,
बस तेज़ हवा और अंधड़ था,
अब लौट बसंत फिर आया है,
तुम भी आओ फूलों की तरह,
डालों पे जो हैं सूने पड़े,
तेरी बाहों को छूने खड़े,
आ के बाहों में तुम ले लो,
उन सावन के झूलों की तरह,
इंतज़ार और अब होता नहीं,
रातों में घंटो सोता नहीं,
पल पल जुदाई का अब तो,
चुभने सा लगा शूलों की तरह,
अब देर न कर खो जाऊंगा,
आगोश-ए-क़ज़ा(१) सो जाऊंगा,
आँचल में समो ले तू मुझको,
उड़ ना जाऊं राह की धूलों की तरह!
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(१) मौत की बाहों में
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शुक्रवार, 11 जून 2010

कुछ अधूरे ख्वाब!

गुज़रते हुए वक़्त के साथ साथ,
तन्हाइयां भी मेरी बढ़ने लगी हैं,
चाँद के सीधे दीदार से भी,
पलकें मेरी अब सिकुड़ने लगी हैं,
किताब में दफ्न तेरी दी हुई कली,
जाने किन पन्नो को पढने लगी है,
सुलगती हुई सी वो तासीर के संग,
हर पत्ती भी उसकी अब सड़ने लगी है,
कोशिश तो की लेकिन थक हार बैठा,
मेरी हिम्मत ही अब मुझसे लड़ने लगी है,
कुछ देखे थे ख्वाब जो रह गए अधूरे,
कुछ तीखी सी कोफ्त है बढने लगी है,
या मिला दे उसे या बुला ले तू मुझको,
बस साँसों की माला बिखरने लगी है,
बस साँसों की माला बिखरने लगी है!

रविवार, 9 मई 2010

माँ खुदा का रूप!

कोमल सी पलकें दुनिया में खुली,
सब से पहले मुझे तू दीखी माँ,
बाकी सब लफ्ज़ तो बाद में फूटे,
"माँ" पहली आयत मैंने सीखी माँ,
जब भी कभी रातों में डर से सिमटा,
तूने आँचल में मुझको समाया था माँ,
कागज़ पे आढी टेढ़ी लकीरों को देख,
मुझे अच्छे से लिखना सिखाया था माँ,
जब भी कोई गलती मैंने थी की,
सबके सामने ही तूने डांटा था माँ,
फिर मेरी पहली कामयाबी को भी,
उन्ही सब के साथ तूने बांटा था माँ,
आज तक जो तूने किया मेरे खातिर,
उसका सबाब क्या बताने से होगा,
कुछ और गर तेरे सजदे में कहूं,
तो सूरज को दिया दिखाना सा होगा,
हमेशा तेरा हाथ मेरे सर पे रहे,
तेरे प्यार की कभी छाँव कभी धूप है,
उसको देखने की अब तमन्ना नहीं है,
बस तू ही मेरे लिए खुदा का रूप है!

शुक्रवार, 7 मई 2010

अल्हान बना लूं मैं!

तेरे मीठे मीठे बोलों को होटों पे सजा लूं मैं,
चुन चुन के उन में मोती इक नज़्म बना लूं मैं,
अफरोज(१) तेरी इन आँखों में इस क़दर डूब जाऊं मैं ,
कुछ और नहीं मदहोशी पे अल्हान(२) बना लूं मैं,
हिचकोले खाती जुल्फों से कुछ तो बिशारत(३) लूं,
हर लफ्ज़ जो छन छन के निकले इक जाल बना लूं मैं,
इतनी तो फजीलत(४) खुदा मेरी आँखों को बख्श दे,
तू अपनी परछाई देखे आईना बना लूं मैं,
गर रुखसार से तू रोशन कर दे अँधेरे पल मेरे,
हर कोने में वो जलती हुई शम्मा को बुझा लूं मैं!
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(१) चमकती हुई (२) मधुर संगीत (३) प्रेरणा (४) महारत
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गुरुवार, 6 मई 2010

मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये!

प्रिय दोस्तों,
आज किसी ने मुझे एक हास्य कविता भेजी तो मैंने सोचा क्यों न इसे अपने ब्लॉगर मित्रो से सांझा की जाए!
मुझे नहीं मालूम की ये कविता किसने लिखी है सो अगर किसी को पता हो तो कृपा कर के मुझे बताएं जिस से की मैं उनका नाम प्रकाशित कर सकू!
अभी नहीं जानता सो उनकी अनुमति की बिना ही अपने ब्लॉग पर पोस्ट कर रहा हूँ!
**अति महत्तवपूर्ण**
ये कविता किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए नहीं कही गयी है, किसी भी व्यक्ति विशेष को भी टार्गेट नहीं किया गया है!
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तो दोस्तों पेश-ए-खिदमत है.......

"मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये"

तुम एम् ए फर्स्ट डिविजन हो, मैं हुआ मेट्रिक फेल प्रिये,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये,
तुम फौजी अफसर की बेटी, मैं तो किसान का बेटा हूँ,
तुम रबड़ी खीर मलाई हो, मैं तो सत्तू सपरेटा हूँ,
तुम ए. सी. घर में रहती हो, मैं पेड़ के नीचे लेटा हूँ,
तुम नयी मारुती लगती हो, मैं स्कूटर लम्ब्रेटा हूँ,
इस कदर अगर हम चुप चुप कर आपस में प्रेम बढ़ाएंगे,
तो इक रोज़ तेरे पापा ज़रूर अमरीश पुरी बन जायेंगे,
सब हड्डी पसली तोड़ मुझे भिजवा देंगे वो जेल प्रिये,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये,
तुम अरब देश की घोड़ी हो, मैं हूँ गधे की नाल प्रिये,
तुम दीवाली का बोनस हो, मैं भूखो की हड़ताल प्रिये,
तुम हीरे जड़ी तश्तरी हो, मैं अलमूनियम का थाल प्रिये,
तुम चिकन सूप बिरयानी हो, मैं कंकड़ वाली दाल प्रिये,
तुम हिरन चौकड़ी भरती हो, मैं हूँ कछुए की चाल प्रिये,
तुम चन्दन वन की लकड़ी हो, मैं हूँ बबूल की छाल प्रिये,
मैं पके आम सा लटका हूँ, मत मारो मुझे गुलेल प्रिये,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये,
मैं महिषासुर सा हूँ कुरूप, तुम कोमल कंचन काया हो,
मैं तन मन से कांशी राम, तुम महा चंचल माया हो,
तुम निर्मल पावन गंगा हो, मैं जलता हुआ पतंगा हूँ,
तुम राज घाट का शांति मार्च, मैं हिन्दू मुस्लिम दंगा हूँ,
तुम हो पूनम का ताज महल, मैं काली गुफा अजन्ता की,
तुम हो वरदान विधाता का, मैं गलती हूँ भगवंता की,
तुम जेट विमान की शोभा हो, मैं बस की ठेलम ठेल प्रिये,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये,
तुम नयी विदेशी मिक्सी हो, मैं पत्थर का सिलबट्टा हूँ,
तुम ए. के. सैंतालिस जैसी, मैं तो इक देसी कट्टा हूँ,
तुम चतुर राबड़ी सी जैसी, मैं भोला भाला लालू हूँ,
तुम मुक्त शेरनी जंगल की, मैं चिड़ियाघर का भालू हूँ,
तुम व्यस्त सोनिया गाँधी सी, मैं वी.पी. सिंह सा खाली हूँ,
तुम हंसी माधुरी दीक्षित की, मैं पुलिस मैन की गाली हूँ,
कल जेल अगर हो जाए तो दिलवा देना तुम बेल प्रिये,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये,
मै ढाबे के ढाँचे जैसा, तुम पांच सितारा होटल हो,
मै महुए का देसी ठर्रा, तुम रेड लेबल की बोतल हो,
तुम चित्रहार का मधुर गीत, मैं कृषि दर्शन की झाडी हूँ,
तुम विश्व सुंदरी सी कमाल, मैं तेलिया छाप कबाड़ी हूँ,
तुम सोने का मोबाइल हो, मैं टेलीफोन का हूँ चोंगा,
तुम मछली मानसरोवर की, मैं सागर तट का हूँ घोंगा,
दस मंजिल से गिर जाऊंगा, मत आगे मुझे धकेल प्रिये,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये,
तुम सत्ता की महारानी हो, मैं विपक्ष की लाचारी हूँ,
तुम हो ममता-जयललिता सी, मैं कुंवारा अटल बिहारी हूँ,
तुम तेंदुलकर का शतक प्रिये, मैं फोल्लो ओन की पारी हूँ,
तुम गेट्ज मटीज कोरोल्ला हो, मैं लेलैंड की लारी हूँ,
मुझको रेफरी ही रहने दो, मत खेलो मुझ से खेल प्रिये,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये,
मैं सोच रहा की रहे हैं कब से, श्रोता मुझ को झेल प्रिये,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये!

शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

यादों के धागे!

जब मौत का पैगाम आये,
फ़रिश्ते मोड़े नहीं जाते,
दूर रह के हर रिश्ता तोड़ दो,
एहसासों के रिश्ते तोड़े नहीं जाते,
दुआ है तुझे भूलने से पहले,
सासें टूट जाएँ मेरी,
इक बार जो टूटे दिल के,
टुकड़े जोड़े नहीं जाते,
हर ज़ख्म सहने की,
हिम्मत जोड़ लेते हैं,
कुछ ज़ख्म ऐसे होते हैं,
खुल्ले छोड़े नहीं जाते,
गर जुदा भी हुए कभी,
बस बदन ही अलग होंगे,
इतने पक्के यादों के धागे,
ज़माना लाख कोशिश कर ले,
कभी तोड़े नहीं जाते...
कभी तोड़े नहीं जाते!

गुरुवार, 15 अप्रैल 2010

नज़र तू आया!

आज तेरी याद ने कुछ यूं सताया,
लाख रोका दिल को पर भरता आया,
तन्हाई दूर करने घूमने निकला,
लहरों के साहिल पे खुद को चलता पाया,
गहवारा(१) लहरों से चाँद निकलते देखा,
इक पल को तेरा चेहरा नज़र आया,
आँखें मूँद लहरों से गुजारिश जो की,
हर छींट संग मोतियों का पुलिंदा आया,
चुन चुन के उन में सब से पारसा(२) मोती,
अपने हाथों से तेरे लिए इक हार बनाया,
सोचा नीले समंदर में डूब के देखूं,
अगले ही पल तेरी आँखों का ख़याल आया,
दिल ने फिर बादलों में खोने को जो कहा,
तेरी जुल्फों से खेलने का मन बना आया,
तेरे आने की उम्मीद में पलकें जो मूंदी,
इलाही के रूप में मुझको नज़र तू आया!

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(१) हिचकोले खाती (२) पवित्र
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गुरुवार, 25 मार्च 2010

ख़्वाबों में लाने के लिए!

इक दरख्वास्त तुझ से की है,
नज़र-ए-जाम पिलाने के लिए,
कतरा-ए-आब(१) ही काफी है सादिक,
मुझे होश में लाने के लिए,
अबरू(२) ये तीखी कम नहीं,
हूरे-सल्तनत हिलाने के लिए,
इन्ही से घायल कर मुझको,
वक़्त नहीं तलवार चलाने के लिए,
देर हुई तो कहीं दम न तोड़ दूं,
हकीम मिलता नहीं ज़ख्म सिलाने के लिए,
जो कहीं नागहाँ(३) दूर चला भी जाऊं,
साँसों से छू लेना मुझे जिलाने के लिए,
हर कीमत देने काबिल हूँ मैं,
तुझे न कभी भुलाने के लिए,
चल अब आँखें मूँद लेता हूँ,
सोना तो पड़ेगा तुझे ख़्वाबों में लाने के लिए!
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(1) पानी का एक कतरा (२) भोहें (३) दुर्घटनावश **********************************************

बुधवार, 24 मार्च 2010

तेरी यादें!


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धन्यवाद!

बुधवार, 17 मार्च 2010

वही कहते हैं!

अब कोई और काम नहीं रह गया,
हर पल तेरे ख्यालों में रहते हैं,
खमदार(१) गेसुओं में खोये हुए,
दिल की उलझने सुलझाते रहते हैं,
ना जाने की इबरत(२) गजरे ने दी थी,
बोले जुल्फों में बादल घने रहते हैं,
मैंने भी फिर चुपके से पूछा ये उसको,
क्या घटायें और पानी संग नहीं रहते हैं,
सन्न सा हुआ मेरे इस नजीर(३) पे,
बोला ये जुमले कहाँ से बहते है,
मोहब्बत ने शायर बना डाला मुझको,
जो लरजता है दिल में वही कहते हैं!

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(१) घुंघराले (२) चेतावनी (३) उदाहरण
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शुक्रवार, 12 मार्च 2010

अधूरी ख्वाहिशें!


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धन्यवाद!

सोमवार, 8 मार्च 2010

नमन करता हूँ-महिला दिवस पर कुछ ख़ास!


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सधन्यवाद,

सुरेन्द्र!

गुरुवार, 4 मार्च 2010

दिल-ए-मासूम!


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रविवार, 28 फ़रवरी 2010

होली पे कुछ ख़ास!



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धन्यवाद!

बुधवार, 24 फ़रवरी 2010

न तू मुझको भूले!


एहतराम(१) में पलकें बिछाए खड़े हैं,

तू आये और इन सर्द आँखों को छू ले,

एजाज़(२) की आरज़ू में शायद इन सूखे,

दरख्तों पे पड़ जाएँ सावन के झूले,

तहम्मुल(३) की हदें मैं तोड़ न बैठूं,

इक पल के लिए भी जो तू दूर हो ले,

बिशारत-ए-आमद(४) जो आ जाए तेरी,

इल्तेजा ये करूँ हर सांस मेरी तू ले,

चल इस तरह तेरी आगोश में रह लूं,

न मैं तुझको भूलूँ न तू मुझको भूले,

खारदार(५) जो वक़्त कभी तुझपे आये,

इलाही ये दिल ही उसे रू-ब-रू ले !

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(१) सम्मान (२) चमत्कार (३) धैर्य (४) आने की खुशखबरी (५) मुसीबतों भरा

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शनिवार, 20 फ़रवरी 2010

खताएं भुला दे!

तन्हाई में ग़ुम मैं तेरा आदी हो गया हूँ,
कम से कम अब मेरी खताएं भुला दे,
ख़याल-ए-वस्ल(१) की हाफिजा(२) कुछ और जी लूं,
नींद और हो गहरी साया-ए-ज़ुल्फ़ फैला दे,
कुछ ऐसा हो के मुहब्बत कामिल(३) हो मेरी,
चंद बचे पलों में दो पल अपने मिला दे,
राज़-ओ-नियाज़(४) तुझसे करूँ कुछ वक़्त जो मिले,
आगोश में ले और ख़्वाबों में झुला दे,
इक छुअन से तू मेरी यास(५) ज़िन्दगी बदल दे,
कगार-ए-मौत पे बुझती हुई शम्मा जला दे!
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(१) मिलने के ख्याल (२) मीठी यादें (३) पूरी (४) वो बातें जो बस आशिकों के बीच होती हैं
(५) जिसमें कोई उम्मीद न हो
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आपका,
सुरेन्द्र!

बुधवार, 17 फ़रवरी 2010

रकीब हो जाते हैं!


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धन्यवाद!

शनिवार, 13 फ़रवरी 2010

"will you be my valentine"


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आप सभी को प्रेम दिवस की शुभकामनाएं!

आपका,

सुरेन्द्र "मुल्हिद"

गुरुवार, 11 फ़रवरी 2010

शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2010

"कशिश"

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मंगलवार, 2 फ़रवरी 2010

मेरी पहली अंग्रेजी रचना!




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प्रिय मित्रो,


आज मैं आपके लिए अपनी पहली अंग्रेजी रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ!


मुझे अंग्रेजी में लिखने का कीड़ा अपनी एक मित्र "डिम्पल" जी की अद्भुत रचनाएँ पढ़े के बाद काटा!


वैसे तो मैं डिम्पल जी की बराबरी नहीं कर सकता हूँ, क्योंकि उनके जैसा लिखने के लिए मुझे नया जन्म लेना पड़ेगा!


डिम्पल जी, आशा करता हूँ की आप मेरी इस कोशिश को पसंद करेंगी!


धन्यवाद!

बुधवार, 27 जनवरी 2010

साँसों की डोरी-(मेरी पचासवीं रचना)


कृपया तस्वीर पर क्लिक करें!

प्रिय दोस्तों,


आज मैं अपनी पचासवीं रचना के साथ आप का शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ, आपके सहयोग और प्यार ने मुझे और लिखने की प्रेरणा दी!


लगभग आठ महीने पहले मैंने ब्लॉग जगत में क़दम रखा और आप लोगों का इतना स्नेह और प्रोत्साहन मिला की वापस कभी जा ही नहीं पाया!


आशा करता हूँ मैं आप सभी की उम्मीदों पे आगे भी खरा उतरूंगा!


एक बार फिर आप सभी दोस्तों का हार्दिक धन्यवाद!

रविवार, 24 जनवरी 2010

नज़्म-नुमा मौत!


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धन्यवाद आपने समय के लिए!

शुक्रवार, 22 जनवरी 2010

तेरे सजदे में!

कृपया तस्वीर पर क्लिक करें, आपको पढने में आसानी होगी!
धन्यवाद !

रविवार, 10 जनवरी 2010

धड़कन की जुबाँ होती है!

कभी अश्कों तो कभी ख़ामोशी में बयाँ होती है,
हर पल एहसासों की तड़प दिल में जवाँ होती है,
तेरे सजदे में रह के ए'तेराफ(१) करना है मुझे,
जो कशिश तुझ में है इबादत में कहाँ होती है,
बेचैनी की लकीरें जो जबीन(२) पे उभरती हैं,
खींच ले जाती हैं मुझे मयकशी जहां होती है,
उस तरफ गुरूब्ता(३) पाता हूँ मैं खुद को,
दरिया की खामोशी सब से ज्यादा जहां होती है,
तू भी एहतेसाब(४) करने लगी है मेरी चाहत को,
माने या न माने तू हर धड़कन की जुबाँ होती है!
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(१) इज़हार (कन्फेस) (२) माथा (३) डूबता (४) परीक्षण
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मंगलवार, 5 जनवरी 2010

काश बस अरमान लिए न मरूं मैं!

कितने अरसे बाद चाँद हुआ नुमाया,

क्यों न तेरी आज तारीफ करूँ मैं,

तुझे देख गुलों का पुलिंदा शरमाया,

क्यों न तेरी आज तारीफ करूँ मैं,

तेरे हुस्न का चर्चा कुछ यूँ गहराया,

महफ़िल में भी जाते हुए डरूं मैं,

अपने अंदाज़ में हर कोई तुझे करे बयान,

कश्म-कश है कैसे बयान करूँ मैं,

इक तरफ ताज महल फिर सूरत है तेरी,

तस्वीर में कैसे रवां करूँ मैं,

दिल में ही रखूँ कह भी न पाऊँ,

काश बस अरमान लिए न मरूं मैं!

शनिवार, 26 दिसंबर 2009

उन्सियत!!

अरसे से इक बात दिल में रक्खी है,

चाह कर भी असबाब(१) बयाँ नहीं होता,

तन्हाई में बस दिन रात बसर होते हैं,

दफ्न जज्बातों में खूं रवां नहीं होता,

रिन्दों(२) के दरमियाँ शाम गुज़रती है,

महफ़िल में रह के भी वक़्त जवाँ नहीं होता,

मयकश पूछते किस मुअम्मा(३) में गुम हूँ,

तेरे ख़्वाबों में डूब के भी हल नुमाँ(४) नहीं होता,

फरोमाया(५) ही इस दुनिया से चला जाऊंगा,

काश एहसास-ए-उन्सियत(६) न किया होता!

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(१) कारण (२) पियक्कड़ (३) पहेली (४) प्रतीत (५) बेकार या किसी काम का नहीं (६) लगाव

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गुरुवार, 17 दिसंबर 2009

खिताब न ले बैठूं!

दीदार-ए-रुखसार से इस क़दर घायल हूँ,
मरहम के बदले शराब न ले बैठूं,
हलावत(१) के चर्चे यूं मशहूर हैं,
पढने के लिए किताब न ले बैठूं,
तेरी आराइश(२) ने कितनो को कब्रगाह भेजा,
बाकियों को बचाने नकाब न ले बैठूं,
हर उस जगह जहां तेरे सईद(३) क़दम पड़ें,
राहगीरों से मैं हिसाब न ले बैठूं,
तेरी महक की तरगीब(४) में खो के कहीं,
उम्मीद-ए-ताज में कांटो का गुलाब न ले बैठूं,
बस अब और देर न कर मुझे अपना बना ले,
मुफलिसी में कहीं मजनू का खिताब न ले बैठूं!
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(१) स्वीटनेस (२) चमकता रूप (३) मुबारक (४) आकर्षण
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शनिवार, 12 दिसंबर 2009

ना जाने किस तरह!

कल तेरे कूचे से गुज़रा मैं इक अजनबी की तरह,
सोचा था मैं तो न होऊंगा उन सभी की तरह,
जो चक्कर लगाते हैं की रुखसार का नज़ारा हो,
पर तू ग़ुम रहती है परदा-नशीं माहजबीं की तरह,
मेरी शोरिशी(१) का आलम ये है तेरी चौखट पे हूँ,
दरमान(२) ले के तू आए हकीम-ऐ-नबी की तरह,
तेरी दुज्दीदा नज़र(३) ने मेरा ये हाल किया है,
कभी ऐसा न था जो अब हूँ मैं अभी की तरह,
फ़रियाद इलाही से करू बोह्तात(४) इतनी न बढ़ जाए,
खून के कतरे आँखों में जम जाएँ सूखी हुई नदी की तरह!

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(१) पागलपन (२) दवा (३) शर्मीली नज़र (४) दरकिनार
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गुरुवार, 10 दिसंबर 2009

तेरी यादों संग!

तेरे साथ कुछ पल गुज़ारने को मिलें,
खुशी से पज्मुर्दगी(१) छोड़ चला आऊंगा,
ग़मों की ग़ुरबत को अलविदा कह के,
तेरे मलाकूत(२) को रहने चला आऊंगा,
हर वक्त तेरी तिश्नगी(३) से थक चुका हूँ,
बस अब तुझे ख़्वाबों में बुला लाऊंगा,
कशकोल(४) लिए तेरे दर पे खड़ा हूँ,
क्या मोहब्बत की खैरात भला पाउँगा,
खुशनसीबी होगी गर तेरा एहसास मिले,
वरना तेरी यादों संग तुर्बत(५) चला जाऊंगा!
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(१)गमो का दरिया (२) हुकूमत (३) प्यास (४) भीख मांगने वाला कटोरा (५) कब्र

रविवार, 29 नवंबर 2009

आ तुझे अपना बनाएं हम!

दुनिया से दूर सितारों के क़ल्ब(१) में,
चलो इक आशियाँ बनाएं हम,
चमचमाती रौशनी फराहम(२) कर के,
सपनो का महल सजायें हम,
चांदनी के नूर से कुछ रंगत ले के,
मुहब्बत के दिए जलायें हम,
सूरज की सुनहरी कशिश ले के,
रंग-ऐ-रुखसार अफज़ा(३) कराएं हम,
गम-ऐ-फुरक़त (४) से कोसों दूर जा के,
गुफ्त-ऐ-शानीद-ऐ-मुहब्बत(५) में खो जायें हम,
जिस रात हूरें जुल्फों पे तेरी अफशां(६) करें,
उसी रात तुझे आगोश में ले अपना बनाएं हम!
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(१) दिल (२) इकठ्ठा (३) बढ़ाना (४) जुदाई (५) मुहब्बत की गहरी बातें (६) सुनहरे पानी की फुहार
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बुधवार, 25 नवंबर 2009

तेरा ही करम.....

ख़्वाबों के झुरमुट और तारों की छाँव में,

गेसू-दराज़(१) में गिरता चला गया मैं,

पहली नज़र में मानूस(२) लगी मुझे,

सबाहत(३) में घिरता चला गया मैं,

तेरी नज़र का कुछ ऐसा वार हुआ,

पत्तों माफिक बिखरता चला गया मैं,

नागहाँ(४) तेरी गली का रुख कर लिया,

बदहवास हुआ फिरता चला गया मैं,

पेश्दास्ती(५) में था के तू थाम लेगी,

दिल हथेली पे लिए चीरता चला गया मैं।

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(१) घने बाल (२) जाना पहचाना (३) खूबसूरती (४) अचानक (५) उम्मीद

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शनिवार, 21 नवंबर 2009

फरमाइश की है...

आज तुझे अपना बनाने की ख्वाहिश की है,
तेरा आबिद बन के तुझ से गुजारिश की है,
सजदे में तेरे ख़ाक हुए उसी दिन से,
जब से आफ़ताब-ऐ-नूर नुमाइश की है,
हाजत-मंद तेरे हुस्न का बाशिंदा हूँ,
फुर्सत में इलाही ने तराइश की है,
इन ताबदार गेसुओं में पनाही दे दे,
मेरी तरफ़ से जिन्होंने ये शिकायत की है,
जाम-ऐ-गाफिर नज़र भर देख ले मुझको,
बड़े माहरम से तुझ से फरमाइश की है,
बड़े माहरम से तुझ से फरमाइश की है!

गुरुवार, 19 नवंबर 2009

बस यूँ ही आज....

काश कोई रिश्ता निभाना न पड़े,

किसी को यूँ छोड़ के जाना न पड़े,

यादों की शम्मा को जला के कभी,

बेदर्दी से उसको बुझाना न पड़े,

करीबी लोगो से रखना परहेज,

कहीं बाद में धोखा खाना न पड़े,

चिलमन-ऐ-नैन खामोश ही रखना,

मुफलिसी में इन्हे झुकाना न पड़े,

तन्हाई में पी लूँ आज कुछ मैं ऐसे,

मयखाने में जाम छलकाना न पड़े,

बुला ले खुदा दूर इतना मुझे,

ज़माने की महफ़िल में आना न पड़े,

ज़माने की महफ़िल में आना न पड़े!

बुधवार, 28 अक्टूबर 2009

तस्वीर उतार लेती हूँ.

अक्सर बैठे तन्हाई में,

सपनो को पुकार लेती हूँ,

कभी पंछी तो कभी पत्ते,

कभी किरने उधार लेती हूँ,

बागीचों के दामन में सजे,

फूलों की कतार लेती हूँ,

छम छम करते अम्बर से,

बारिश की फुहार लेती हूँ,

डोली ले जाते कहारों से,

दुल्हन का श्रृंगार लेती हूँ,

क्षितिज की कोमल सुबह से,

इक ठंडी बयार लेती हूँ,

बस इन सब एहसासों को मैं,

कागज़ पे निखार लेती हूँ,

माहिर हूँ मैं अपने फन की,

तस्वीर उतार लेती हूँ,

तस्वीर उतार लेती हूँ।

बुधवार, 23 सितंबर 2009

तेरी मूरत

गर चाँद से मुखड़े का दीदार दे दे,
तेरा कौन सा कोई खर्चा होगा,
चार जगह तेरी तारीफ कर दूंगा,
हर तरफ़ बस तेरा चर्चा होगा,
तुझे देखने के लिए कतारें लगेंगी,
सभी के हाथ अर्जी का पर्चा होगा,
तेरी जुल्फों का घना साया देख,
बादल घुमड़ घुमड़ गरजा होगा,
तेरे लबों की नक्काशी करने वाला भी,
इक बार इन्हे चूमने को तरसा होगा,
तराशते ईमान खुदा का भी डोला होगा,
तभी खुशी में बादल बेपनाह बरसा होगा!

शुक्रवार, 18 सितंबर 2009

कुछ चुनिंदा पल!

तेरी यादों के समंदर से कुछ चुनिंदा पल चुराए हैं,
जिन्हें सिराहने रख कर कुछ मीठे ख्वाब पाये हैं,
ख्वाबो में डूबा जन्नत में इतनी दूर चला गया,
के फ़रिश्ते मुझे अब घर मेरे छोड़ने आए हैं,
जब भी तेरे एहसास को महसूस मैं करूँ,
लगे कि कलियाँ ख़ुद को जैसे फूल बनाये हैं,
मयकदे में साकी यूं झिंझोड़ के बस पूछे,
किस खुशनसीब की जानिब इतने जाम लगाये हैं,
इक नज़र उसको देख दिल चीर रख दिया,
ये देख ले तू किस को हम दिल में छुपाये हैं!

बुधवार, 2 सितंबर 2009

एहसासों को न मरने दिया!

कुछ देर पहले जब मैं ख्यालों की दुनिया में गुम् था,
कुछ कांच के टुकडों को पैरों में चुभता महसूस किया,
नज़र उठा के ज्यूँ ही फर्श के सीने पे निगाह गड़ाई
तेरी यादों को झट समेट हथेली में अपनी महफूज किया,
खून के कतरे जब उसी हथेली से ज़मीं रंगरेज़ करने लगे,
तेरी जुदाई के ग़म से बस बेचैन दिल को भरने दिया,
नींद टूटी तो अपने पे मिटटी के गुबार को गिरता पाया,
बदन का साथ छोड़ दिया पर एहसासों को न मरने दिया,
हर मुमकिन कोशिश की खुदा ने वो बिखरे टुकड़े छिनने की,
कहा क्या बिसात इनकी जब उसने ही ख़ुद से दूर किया,
कर दे इन्हे मेरे हवाले और जन्नत-ऐ-नसीब कुबूल कर,
देखा इलाही को मुस्कुरा और टुकडों संग दोज़ख मंज़ूर किया!

मंगलवार, 25 अगस्त 2009

सिर्फ़ तेरे लिए!

बस इक बार जो तेरी हाँ हो जाए,
सपनो का महल तेरे लिए बनाऊंगा,
बर्क़तों से गुलज़ार ये जहाँ हो जाए,
तेरे सजदे में ये दिन रात बिताऊंगा,
दुनिया से चुरा के तुझ को मैं,
दिल की खामोश परतों पे सुलाऊंगा,
धडकनों का एहसासतेरे दिल को करा के,
तेरी साँसों को अपनी साँसों से मिलाऊंगा,
मयकश की तरह तेरी आँखों में डूब के,
मद के नशीले जाम पिए जाऊंगा,
होशो-हवास खो के जब गिरने लगूंगा,
यकीन है ख़ुद को तेरी बाहों में पाउँगा,
मस्जिद में सर झुका के जब दुआ करूँगा,
ता-उम्र तेरे संग रहने की फरियाद लगाऊंगा!

रविवार, 23 अगस्त 2009

यह सब क्या हैं तेरे आगे!

ये चाँद सितारे और फूल खिलखिलाते,
ये सब क्या हैं तेरे आगे,
गुलाब की पंखुडियां और भवरे मंडराते,
ये सब क्या हैं तेरे आगे,
सूरज की मीठी तपिश में पक्षी चेहचाहाते,
ये सब क्या हैं तेरे आगे,
पहाडों से छम छम ये झरने लहलहाते,
यह सब क्या हैं तेरे आगे,
मयकश साकी की शान में बंदिशें सुनाते,
यह सब क्या हैं तेरे आगे,
पीर खुदा के सजदे में कलमे जो गाते,
यह सब क्या हैं तेरे आगे,
जन्नत-ऐ-हूर भी तेरे हुस्न के चर्चे गाते,
यह सब क्या हैं तेरे आगे!

बुधवार, 19 अगस्त 2009

कितना आसान होता है न!

जन्मों जन्म के वादे बना के,
ख्वाबों की मीठी बातें सुना के,
कितना आसान होता है न रिश्तों को यूं तोड़ देना,
ज़िन्दगी के हर क़दम साथ निभा के,
लडखडाते क़दमो से बाहों में उठा के,
कितना आसान होता है न राहों को यूं मोड़ देना,
गुमनामियों की गर्त में रौशनी दिखा के,
फिर कलाई पे अपनी नाम मेरा लिखा के,
कितना आसान होता है न बीच राह यूं छोड़ देना,
ज़माने से छुप छुप संग मेरे घूम के,
लरज़ते लबों से मेरे लबों को चूम के,
कितना आसान होता है न किसी और से नाता जोड़ लेना,
आखिरी वक्त तुझे देखने की आरजूएं सजा के,
फिर हमेशा की तरह तुझे न करीब पा के,
कितना आसान होता है न साँसों की ज़ंजीर यूं तोड़ देना!

मंगलवार, 18 अगस्त 2009

शायद फिर न उठ पाऊँ!

क्या मिला मुझे दुनिया में अपने होने के बाद,

अश्कों ने साथ छोड़ दिया हर पल रोने के बाद,

किया करते थे गुमां जिनकी दोस्तियों पे हम,

न रहे वो भी अपने सब कुछ खोने के बाद,

अब क्यों मैं हर पल हँसता हूँ रोने का बाद,

क्या जीना फिर भी पड़ता है खोने के बाद,

जाते जाते मेरा आखिरी सलाम तू ले जा,

शायद फिर न उठ पाऊँ रात सोने के बाद!

मंगलवार, 11 अगस्त 2009

कुछ दिन और बरसे!

शोखी से वो सज संवर के निकले हैं घर से,
सुकून मिला इन आखों को जो कब से तरसे,
पलकें झुकायें मौसीकी में चले जाते हैं वो,
खुदाया एक बार देख लें मुहब्बत की नज़र से,
जुल्फों के घने लच्छे लहराए कुछ इस तरह,
बेशर्म होके दुपट्टा भी उड़ गया हो सर से,
दुआ करू वो आए और लग जाए गले से,
किसी और नही कम से कम बिजली के डर से,
ना जाने दूँ उसे मैं दूर इन आगोशियों से,
खुदा बादल से कह दो के कुछ दिन और बरसे!

सोमवार, 10 अगस्त 2009

बन न पाया काजी!

इश्क के क़ल्मे पढ़ पढ़ बैठा न बन पाया काजी,

उम्रो उम्र मदीने फिर के न बन पाया हाजी,

तेरे जानिब सजदे करके न जित पाया बाजी,

तलवारों के महरम सदके न बन पाया गाजी,

सूखे फूलों की तासीर को न कर पाया ताज़ी,

हाथों में दिल रख भी तुझको न कर पाया राज़ी,

हिना-ऐ-मुल्हिद भी न तेरे हाथों पर थी साजी,

बिन तेरे मेरी रूह भी कर गई मुझ से दगाबाजी!

गुरुवार, 6 अगस्त 2009

दर्द!

जमात में मेरे मरने पर रोने वालो की कमी नही थी,
दफ़नाने मेरी मिटटी को किस्मत में दो गज ज़मी नही थी,
हलकी हलकी सी नमी तो बदन को महसूस हुई लेकिन,
मेरे जाने की खुशबु ऐ गम अभी पूरी तरह रमी नही थी,
शायद तेरे इंतज़ार में जो अश्को के दरिया बहाए,
मर के भी रफ़्तार उनकी दिल में मेरे थमी नही थी,
गर इक बार तू जनाजे पे नज़र-ऐ-इनायत कर देती,
ख्वाहिश पूरी हो जाती जो बर्फ नुमा जमी नही थी,
बस अब चलते हैं सफर पूरा कर के इस दुनिया का,
धुंधली हो गयी आरजूएं जो शायद कभी घनी नही थी!

मंगलवार, 4 अगस्त 2009

बारिश के इंतज़ार में!

बेदर्दी ये बादल कैसे जाने कहाँ पे बरस गए,
कब से हैं उम्मीद लगाए नैन भी अब तो तरस गए,
उमस भरी गर्मी की दुपहरिया जला के चली जाती है,
हर वक्त पसीना पी पी के होठ भी अब तो लरज़ गए,
फसलें भी अब सूख गई हर पत्ता झड़ के गिरता है,
तब भी न पसीजा दिल तेरा आए और बस गरज गए,
क्या बोयेंगे किसान भाई और क्या वोह हमें खिलाएंगे,
इक तेरी जो टेढी नज़र हुई जागीरों में बस क़र्ज़ गए,
अब तो बरसो यूं टूट के रिम झिम कर दो बगिया को,
हर ज़र्रा खुशी से गा उठे और पूरे तेरे फ़र्ज़ हुए!

रविवार, 2 अगस्त 2009

फ्रेंडशिप डे पर कुछ ख़ास!

आज है दोस्ती दिवस सोचा के कुछ दोस्त बना लें,
जो रूठे हैं काफ़ी दिनों से आओ चलो उन्हें मना लें,
येही सोच के आज सुबह उन्हें इक संदेश भेजा,
दिन में रात न हो जाए गर वो उस पे नज़र भी डालें,
न जाने क्या खता हुई जो वो इस कदर खफा हैं,
गनीमत है जो सामने से निकले और नज़र मिला लें,
गर गुनाह हुआ है हमसे तो कम से कम बताएं ज़रा,
ऐसे कैसे हम अपने आप को गुनेहगार बना लें,
सोचा था की चलो आज उन्हें मना ही लेंगे हम,
दिन ढलते ही ये आलम है बस ये कड़वी यादें भुला लें,
उम्मीद में की अगले दोस्ती दिवस पे कुछ वक्त संग बिताएं,
आओ खुदा से उनकी सलामती की दुआ मना लें!

बुधवार, 29 जुलाई 2009

क्या कब्र में भी चैन की नींद सो सकूँगा!

गहरी नींद में ख्वाबो की दुनिया में जा के,
क्या मैं कभी सुकून की नींद सो सकूँगा,
अपने ज़ख्मो को हँसी का जामा पहना के,
क्या तेरे कंधे पे सर रख के रो सकूँगा,
बे-सब्र यादें जो मुकम्मिली के मुगालते में हैं,
क्या उन्हें दफन रखने में कामयाब हो सकूँगा,
तेरे ग़म में बंजर हुई दिल के ज़मीन पे,
क्या हँसते हुए फूलों के बीज बो सकूँगा,
तेरे बदन की खुशबु से पैदा हुए जज्बातों को,
क्या अश्कों की बरसात से भिगो सकूँगा,
तेरी यादें जिसे जीते जी मरने न दें,
क्या कब्र में भी चैन की नींद सो सकूँगा!